सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर कई अहम सवाल पूछे हैं। साथ ही चिंता जाहिर करते हुए यह आश्वासन भी मांगा है कि आने वाले समय में इनका इस्तेमाल आतंकवाद और अन्य हिंसात्मक घटनाओं के लिए नहीं होगा। दरअसल, हर चुनावी सीजन में दान के लिए राजनीतिक दल इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए बड़ी संख्या में चंदा जुटाते हैं। हालांकि, बॉन्ड्स के माध्यम से दान देने वाले की पहचान गुप्त रहती है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह चिंता एक याचिका को लेकर जाहिर की। इस याचिका में बॉन्ड्स के रिलीज को चुनौती दी गई थी। चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ने इस याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से पूछा कि सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स में राजनीतिक दलों के दानकर्ताओं को पहचान न जाहिर करने की छूट क्यों दे रखी है।
सीजेआई ने 1 से 10 अप्रैल तक की इलेक्टोरल बॉन्ड्स रिलीज करने की अवधि पर सवाल उठाते हुए कहा, “क्या कोई इन 10 दिनों में इन बॉन्ड्स को खरीद कर आतंकी ऑपरेशन को फंड कर सकता है? हमें लगता है कि कुछ राजनीतिक दल हैं, जिनके एजेंडे में ही हिंसा है।” बोबडे ने आगे कहा, “हम राजनीति और किसी राजनीतिक दल की बात नहीं करना चाहते। पर क्या पार्टियां बॉन्ड्स लेकर ऐसे प्रदर्शनों को फंड नहीं कर सकतीं, जो हिंसक हो जाएं। इलेक्टोरल बॉन्ड्स की इस्तेमाल की जाने वाली राशि पर सरकार का क्या नियंत्रण है?”
अटॉर्नी जनरल ने दी सफाई: इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स को कैश कराने का काम सिर्फ वही पार्टियां कर सकती हैं, जिन्हें हालिया लोकसभा या विधानसभा चुनावों में कम से कम 1 फीसदी वोट मिले हों। वेणुगोपाल ने यह भी तर्क दिया कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए मिलने वाली राशि पूरी व्हाइट मनी होती है, जो कि बैंकों के जरिए जाती है और इन्हें चेक के जरिए दिया जाता है। हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स इसका खुलासा नहीं करते कि इन्हें किसने खरीदा और किसे दिया।
ADR की तरफ से दाखिल की गई याचिका: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स पहले भी कई मौकों पर इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाने की मांग करता रहा है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट इससे मना कर चुका है। एनजीओ की याचिका विस्तृत सुनवाई के लिए लंबित है। 2019 में इसी याचिका को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया था कि सभी राजनीतिक दल खुद को इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले चंदे की जानकारी सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को दें। सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक इन लिफाफों को सील ही रखा जाए।