आरोपियों को जमानत पर रिहा करने के अपने ही फैसले पर अमल न होने से सुप्रीम कोर्ट का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। डबल बेंच ने बेहद तल्ख लहजे में कहा कि जो मजिस्ट्रेट्स सुप्रीम कोर्ट को हलके में ले रहे हैं, उनको अदालत से हटाकर ट्रेनिंग पर भेज दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट्स को भी सख्त हिदायत जारी की। बेंच का कहना था कि जिला अदालतों की निगरानी का काम हाईकोर्ट्स के जिम्मे होता है। उन्हें देखना चाहिए कि लोअर कोर्ट हमारे आदेश की पालना पूरी तरह से करें। जब हमने एक बार फैसला दे दिया तो उस पर अमल होना ही चाहिए।
जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अहसानुद्दीन और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच के तेवर तब तीखे हुए जब एमीकस क्यूरी सिद्धार्थ लूथरा ने कुछ ऐसे उदाहरण पेश किए, जिनमें आरोपियों को जमानत नहीं दी गई। बेंच को ये भी बताया गया कि कुछ मामलों में सरकारी वकील ने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उलट दलीलें दीं। बेंच ने कहा कि पब्लिक प्रॉस्यीक्यूटर भी अदालतों के सामने मामलों को सही तरीके से रखें।
जांच एजेंसियों पर भी भड़का सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस अहसानुद्दीन जांच एजेंसियों पर भी भड़के। उनका कहना था कि हम केवल अदालतों की बात ही क्यों करें। एजेंसी भी हमारे आदेश के खिलाफ जाकर अपना जवाब दाखिल कर रही है। उनका कहना था कि जांच एजेंसियां हमें उकसाए नहीं, वरना उनके खिलाफ भी सख्त एक्शन लेना पड़ जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने सतिंदर कुमार आंतिल बनाम सीबीआई के मामले में जमानत के लिए दिशा निर्देश तय किए थे। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम संदरेश की बेंच ने कहा था कि आरोपी को तब तक जेल न भेजा जाए जब तक कि ऐसा करना जरूरी न हो। उनका मानना था कि अदालतें किसी को जेल भेजती हैं तो फिर वो जमानत के लिए अर्जी दाखिल करेगा। यानि बेवजह के काम में इजाफा होगा।
2022 में जस्टिस कौल की कोर्ट ने दिया था आदेश
अदालत की चिंता इस बात को लेकर भी थी कि तमाम जेलें विचाराधीन कैदियों से भरी हुई हैं। लोअर कोर्ट आरोपियों को बगैर सोचे समझे जेल भेज देती हैं। डबल बेंच ने जमानत के लिए कुछ मानदंड तय किए थे। तब आदेश दिया गया था कि लोअर कोर्ट मैकेनिकल अंदाज में आरोपियों को रिमांड पर भेजने का आदेश न दें। सुप्रीम कोर्ट ने 2022 के फैसले में ये भी कहा था कि दस साल से ज्यादा की सजा काट रहे कैदियों को जमानत पर रिहा करने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।