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Defamation Law के खिलाफ एकजुट हो गए थे धुर विरोधी राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और सुब्रमण्यम स्वामी, जानिए कैसे

सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में आईपीसी की धारा 499 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था। यानि राहुल, केजरीवाल और स्वामी एक मंच पर आए तो लेकिन उनके साथ आने के बाद भी वो कानून नहीं खत्म हो सका जो राजनेताओं के लिए बुरा सपना है।

Rahul Gandhi| Arvind Kejriwal Photo| Arvind Kejriwal Trending News|
कांग्रेस नेता राहुल गांधी व दिल्ली सीएम अरविन्द केजरीवाल (फोटो सोर्स – सोशल मीडिया)।

नरेंद्र मोदी 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बने। उसके बाद के दौर में Criminal Defamation Law का जोर इस कदर बढ़ा कि एक दूसरे के धुर विरोधी माने जाने वाले राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और सुब्रमण्यम स्वामी एक मंच पर आए और इस कानून का पुरजोर विरोध किया। सभी ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट को एक साथ चुनौती दी।

हालांकि कानून को चुनौती देने वाले कई और लोग भी थे। अलबत्ता राहुल, केजरीवाल और सुब्रमण्यम स्वामी का एक मंच पर आना बड़ी खबर था। सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में आईपीसी की धारा 499 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था। यानि राहुल, केजरीवाल और स्वामी एक मंच पर आए तो लेकिन उनके साथ आने के बाद भी वो कानून नहीं खत्म हो सका जो राजनेताओं के लिए बुरा सपना है।

गौरतलब है कि राहुल गांधी और सुब्रमण्यम स्वामी एक दूसरे के धुर विरोधी हैं। स्वामी की वजह से ही राहुल गांधी और सोनिया गांधी नेशनल हेराल्ड के केस में ईडी की जांच का सामना कर रहे हैं। राहुल गांधी के साथ अरविंद केजरीवाल के भी संबंध अच्छे नहीं हैं। लेकिन कभी ये सारे एक मंच पर आए।

समझते हैं कि कैसे काम करता है Defamation Law

आईपीसी की धारा 499 में मानहानि के तहत केस दायर किया जा सकता है। जबकि सेक्शन 500 के तहत किसी को दोषी ठहराकर सजा सुनाई जाती है। जब कोई या तो बोले गए या पढ़े जाने वाले तरीके के जरिये किसी की छवि को आघात पहुंचाने के लिए आरोप लगाता है तो वो मानहानि करना कहलाएगा। भारत मे आईपीसी की धारा 499 के तहत पीड़ित शख्स अदालत में मानहानि का मुकदमा दायर कर सकता है। 2016 में 499 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए कहा था कि रेपुटेशन (छवि) को बचाना मालभूत अधिकार है। अदालत ने इसे मानवाधिकार भी माना।

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर कहा था- कुछ भी बोलना फ्री स्पीच नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि संविधान में हर शख्स को बोलने की आजादी है। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि कोई किसी के खिलाफ कुछ भी बोले। सुप्रीम कोर्ट ने फ्री स्पीच को दायरे में रखते हुए कहा था कि कोई दूसरे के खिलाफ कुछ भी बोलेगा तो समाज ही दूषित हो जाएगा।

सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने भी मानहानि कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। राहुल गांधी के केस में उनका मामला है कि ये कुछ ज्यादा ही है। इसमें आरोप साबित होने पर जुर्माने के साथ दो साल तक की सजा हो सकती है। लेकिन जब किसी की पहली सजा है तो ये कुछ ज्यादा ही है।

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First published on: 26-03-2023 at 16:06 IST
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