यह गुब्बारा एक हफ्ते से अमेरिकी इलाके में था। अमेरिका ने इसे दक्षिण कैरोलाइना के तट पर मार गिराया। अमेरिकी लड़ाकू विमान एफ-22 ने मिसाइल दागकर इसे गिरा दिया। चीन का कहना है कि यह मौसम के बारे में जानकारी जुटाने वाला सामान्य किस्म का गुब्बारा था। चीन और अमेरिका के बीच राजनयिक तनाव बढ़ गया है।
इस घटना से यह सवाल उठने लगा है कि क्या चीन ने भारत के साथ भी ऐसी हरकत की है या भविष्य में भी इसका खतरा हो सकता है। राजनयिक तनाव के ताजा दौर में भारत चौकस है और स्थिति पर नजर रखे हुए है। चौकसी का सवाल इसलिए भी अहम है, क्योंकि चीन और भारत के बीच करीब 32 महीनों से पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव के हालात हैं।
चीन-अमेरिका तनाव
अमेरिका के आसमान में चीनी जासूसी गुब्बारा प्रकरण के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन का चीनी दौरा टाल दिया गया। चीन-अमेरिका के संबंधों में इस घटना को एक बड़ा झटका माना जा रहा है। ब्लिंकन के चीन जाने से एक दिन पहले चीन का गुब्बारा अमेरिका के आसमान में नजर आया और जिस तनाव को कम करने के लिए ब्लिंकन चीन जा रहे थे वो बढ़ता दिखने लगा। अमेरिका के पश्चिमी राज्य मोंटाना में इस गुब्बारे को उड़ता पाया गया था। तब इस इलाके में विमानों की उड़ान रोकनी पड़ी थी।
यह गुब्बारा मोंटाना में दिखने से पहले अलास्का के अल्यूशन आईलैंड और कनाडा से होकर गुजरा था। दूसरी ओर, चीन ने गुब्बारे के जरिए जासूसी के आरोपों से इनकार किया है। चीन ने इसे एक नागरिक हितों वाला वायुयान बताया, जो रास्ते से भटक गया था। इस गुब्बारे का मकसद मौसम संबंधी जानकारियां जुटाना था। चीन के सफाई देने के बावजूद अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने दौरा रद्द करने की घोषणा कर दी। अमेरिकी अधिकारियों का कहना था कि ऐसा नहीं था कि इस दौरे से कोई समाधान निकल जाता, लेकिन इससे बातचीत शुरू होने की उम्मीद जरूर थी।
भारत की चुनौती
अमेरिका में जासूसी गुब्बारा उड़ाकर हड़कंप मचाने वाले चीन ने जनवरी 2022 में हिंद महासागर में भारत के रणनीतिक रूप से बेहद अहम अंडमान निकोबार द्वीप समूह के ऊपर से जासूसी गुब्बारा उड़ाया था। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के इस जासूसी गुब्बारे की तस्वीर भी ली गई थी। चीन ने साल 2000 में जापान के ऊपर से भी इसी तरह का जासूसी गुब्बारा उड़ाया था।
पेंटागन की एक रपट के मुताबिक, चीन ने अत्यधिक ऊंचाई पर उड़ने वाले जासूसी गुब्बारे का इस्तेमाल भारत के सैन्य अड्डों की जासूसी के लिए भी किया था। भारत के बेहद अहम नौसैनिक अड्डे अंडमान निकोबार द्वीप समूह के ऊपर से जासूसी गुब्बारा उड़ा था। भारत का यह द्वीप मलक्का जलडमरुमध्य के पास है जहां से चीन की गर्दन को दबोचा जा सकता है। चीन का ज्यादातर व्यापार इसी रास्ते से होता है। पहले भी कभी-कभी पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग इलाके के ऊपर चीन ने बलून उड़ाए हैं। लेकिन यह उनके क्षेत्र में होता रहा तो भारत कुछ कर नहीं सका।
जैविक युद्धाग्र के इस्तेमाल की आशंका
ऐसे गुब्बारों से जैविक या रसायनिक युद्धाग्र के इस्तेमाल की आशंका होती है। इस कारण अमेरिका ने इसे मार गिराने में सावधानी बरती। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर बताया 28 जनवरी को अमेरिका के हवाई क्षेत्र में एलुटिएल द्वीप के पास आसमान में चीन का ये बलून देखा गया था। यह पहले अलास्का और कनाडा से होते हुए दोबारा इडाहो (अमेरिकी हवाई क्षेत्र) में घुसा।
गुब्बारा जब समंदर के ऊपर पहुंचा तो, इसे नष्ट करने के लिए वर्जीनिया के लेंग्ले एअरफोर्स अड्डे से एफ-22 रैप्टर लड़ाकू विमानों ने उड़ान भरी। इस विमान से एआइएम-9एक्स साइडविंडर मिसाइल दागी गई। एफ-22 विमान ने 58 हजार की फीट की ऊंचाई से 60 से 65 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ रहे गुब्बारे पर निशाना साधा। मिसाइल लगने के बाद यह गुब्बारा तट से छह मील दूर 47 फीट गहरे समुद्र में गिर गया।
गुब्बारे से जासूसी
जासूसी बैलून में लगे कैमरे के जरिए ऊपर से देखकर तैनाती का पता कर सकते हैं, सैन्य मूवमेंट का भी पता कर सकते हैं। रडार को छोटी चीजों को पकड़ने मे दिक्कत आती है। जैसे ड्रोन को पकड़ना मुश्किल होता है। उसी तरह बैलून को भी रडार से नहीं पकड़ा जा सकता। जासूसी गुब्बारे बेहद हल्के होते हैं और इनमें हीलियम गैस भरी जाती है। जासूसी के लिए इसमें एडवांस कैमरे लगाए जाते हैं। जासूसी के मामले में ये गुब्बारे उपग्रहों से भी बेहतर साबित होते हैं।
आमतौर पर गुब्बारे पृथ्वी की निचली कक्षा वाले उपग्रह की तुलना में साफ फोटो ले सकते हैं। ऐसा ज्यादातर ऐसे उपग्रह की गति के कारण होता है, जो 90 मिनट में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी कर लेते हैं। उपग्रह दूर से परिक्रमा करते हैं, इसलिए आम तौर पर धुंधली फोटो आती है।
क्या कहते हैं जानकार
यह बात अहम है कि वह गुब्बारा लंबी दूरी तय कर अमेरिका पहुंचा। भारत के साथ तो चीन की लंबी सीमा रेखा है। भारत का सीमा पर वायु रक्षा प्रणाली मजबूत है और उसे लगातार और मजबूत किया जा रहा है। अब इसकी संभावना कम है कि ऐसा कोई जासूसी गुब्बारा आए और उसे पहचाना न जा सके। हमारे सुखोई-30 और रफाल ऐसे गुब्बारों को मार गिराने में सक्षम हैं।
- मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अशोक मेहता, रक्षा विशेषज्ञ
आज के दौर में जासूसी ड्रोन के जरिए भी होती है, लेकिन गुब्बारा ज्यादा लंबे वक्त तक हवा में रह सकता है। उसका निगरानी क्षेत्र ज्यादा होता है। वह स्थिर रह सकता है और आगे-पीछे भी हो सकता है। इसकी आशंका से कोई इनकार नहीं कर सकता कि चीन इस तरह के जासूसी बलून का इस्तेमाल एलएसी के पास भी कर सकता है।
- लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) संजय कुलकर्णी, पूर्व महानिदेशक, इंफैंट्री