शिवसेना तीसरे मोर्चे बनाने की कोशिश में जुटी ममता बनर्जी से सहमत नहीं है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कहा है कि दूसरा गठबंधन खड़ा करना केवल भाजपा को मजबूत करना होगा। साथ ही सामना में यह भी लिखा गया कि नरेंद्र मोदी की बीजेपी को आज एनडीए की जरूरत नहीं है लेकिन अभी भी विपक्ष के लिए यूपीए जरूरी है।
सामना में छपे लेख में लिखा गया कि ममता बनर्जी की राजनीति कांग्रेस के हिसाब से नहीं है। पश्चिम बंगाल में उन्होंने कांग्रेस, लेफ्ट और भाजपा का सफाया किया। यह सही है लेकिन कांग्रेस को राष्ट्रीय राजनीति से दूर रखकर राजनीति करना मौजूदा फासीवादी शासन को बल देने के समान है। मोदी और भाजपा चाहती है कि कांग्रेस पूरी तरह से ख़त्म हो जाए। लेकिन मोदी और भाजपा के खिलाफ लड़ने वाले लोगों का भी यह एजेंडा हो कि कांग्रेस ख़त्म हो जाए, यह बेहद ही खतरनाक है।
संपादकीय में यह भी कहा गया कि जो लोग मजबूत विपक्ष चाहते हैं और दिल्ली की सत्ता पर भाजपा को काबिज नहीं देखना चाहते हैं। उन्हें यूपीए को मजबूत करने की दिशा में काम करना चाहिए। साथ ही सामना में लिखे गए लेख में कहा गया कि यूपीए के नेतृत्व को लेकर ही पेंच फंसा हुआ है। जिनको भी कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए स्वीकार नहीं नहीं है उन्हें खुलकर अपनी बात रखनी चाहिए।
इसके अलावा लेख में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर निशाना साधते हुए कहा गया कि पर्दे के पीछे गप-शप न करें क्योंकि इससे भ्रम और संदेह पैदा होता है। हालांकि लेख में ममता बनर्जी के दौरों को लेकर लिखा गया कि इससे विपक्षी दलों की गतिविधियां तेज हुई है। भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विकल्प खड़ा करना है इसपर सब सहमत हैं लेकिन इसमें कौन कौन शामिल होंगे इसको लेकर अभी विवाद बना हुआ है।
सामना के लेख में प्रशांत किशोर के उस बयान की भी आलोचना की गई जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस को विपक्षी नेतृत्व के फैसले लेने का दैवीय अधिकार नहीं है। शिवसेना के लेख में लिखा गया किसी भी व्यक्ति को दैवीय अधिकार नहीं मिला है। यूपीए नेतृत्व का दैवीय अधिकार ही भविष्य का फैसला करेगा। राजनीतिक घराने और खानदान के किले समय आने पर ढह जाते हैं।