वरिष्ठ पत्रकार सागरिका घोष ने अप्रत्यक्ष रूप से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भारत रत्न देने की मांग की है। उन्होंने टीओआई में लिखे अपने एक ब्लॉग में कहा कि जब भारत के 13वें राष्ट्रपति और भारत रत्न प्रणब मुखर्जी का निधन हुआ तो मनमोहन सिंह अपने पूर्व सहयोगी की प्रशंसा में अडिग थे। उन्होंने मुखर्जी को आजाद भारत के महानतम नेताओं में से एक माना है। घोष ने कहा कि सरकार में मुखर्जी का लंबा कार्यकाल एक असाधारण उपलब्धि है मगर सवाल एक सवाल ये भी है कि क्या मनमोहन अपने सहयोगी की तुलना में भारत रत्न के अधिक योग्य हैं?
पत्रकार कहती हैं कि मनमोहन सिंह साल 1991 में जब वित्त मंत्री बने, उन्होंने कई बड़े बदलाव किए। पीवी नरसिम्हा राव के समर्थन से उन्होंने दशकों से चल रहे मजबूत नियंत्रण से अर्थव्यवस्था को मुक्त किया। 2006 से 2016 के बीच 271 मिलियन यानी 27.1 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया गया। इस दौरान लंबे समय देश के पीएम मनमोहन सिंह ही रहे। भारत में करोड़ों लोगों के गरीबी रेखा से ऊपर उठने का आंकड़े यूएन के अनुसार है। उन्होंने कहा कि आज गरीब समर्थक कई योजनाएं जैसे वित्तीय समावेशन, मनरेगा और आधार कार्ड उनके कार्यकाल की देन हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में वित्त मंत्रियों पर अक्सर कुछ कॉरपोरेट घरानों के निकट होने का आरोप लगाया जाता रहा है। मगर सिंह पर कभी भी जातिवाद या किसी विशेष व्यावसायिक घराने से जुड़े होने का आरोप नहीं गया। भ्रष्टाचार के मामले में मनमोहन सरकार के मंत्रियों को खूब निशाना बनाया गया मगर विरोधियों ने भी भ्रष्टचार मामले में उनपर कभी कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की।
अपने ब्लॉग में उन्होंने कहा कि हालांकि यूपीए-2 कार्यकाल में भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े आरोपों ने मनमोहन सिंह के कद को कम किया है। मगर उनपर किसी भी व्यक्तिगत भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप नहीं लगा। वास्तव में उन्होंने जिस तरह से अपने परिवार को राजनीतिक जीवन से दूर रखा वो राजनीतिक वर्ग के लिए एक आदर्श है।