सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश को फटकार लगाते हुए कहा कि जब तक अवमानना याचिका नहीं न दाखिल की जाए तब तक राज्य सरकार सुनती ही नहीं है। देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश के विरुद्ध डाली गई याचिका पर सुनवाई करते कर रही थी, जिसमें हाई कोर्ट की ओर से राज्य के चीफ सेक्रेटरी समेत राज्य सरकार के 8 अफसरों कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया था।

गौरतलब है कि मई में पिछले साल उत्तर प्रदेश के कौशांबी में अस्पताल से 82 साल के एक जूनियर इंजीनियर गायब हो गए थे, जिनके केस पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने कोर्ट में बड़े अफसरों को तलब किया था।

पूरे मामले पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश (CJI) रमना ने कहा, “मुझे यह अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है लेकिन यह राज्य की आदत बन चुकी है कि जब तक कोर्ट की अवमानना पर याचिका दाखिल ना करो तब तक सरकार सुनती ही नहीं है।”

कोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष रखते हुए एडीशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद ने कहा कि मामले की जांच के लिए दो एसआईटी टीमों का गठन कर दिया गया है और यह जांच अभी की जा रही है कि लापता व्यक्ति इस वक्त कहां मौजूद है।

उत्तर प्रदेश सरकार की इस दलील को सुनने के बाद तीन जजों की बेंच के एक अन्य न्यायाधीश हीमा कोहली ने कहा कि “1 साल से ज्यादा का समय बीत चुका है और व्यक्ति पिछले साल 7 मई को लापता हुआ था” जबकि एक न्यायाधीश अन्य कृष्णा मुरारी ने कहा कि “क्या आपने उनकी बॉडी की कहीं तलाश की है?”

इस पर प्रसाद ने कहा कि प्रयागराज में सभी शवदाह गृहों की तलाशी ली जा चुकी है और आखिरी मेडिकल चेकअप के हिसाब से लापता व्यक्ति बिल्कुल ठीक था, जिस पर न्यायाधीश मुरारी ने कहा “क्या वह हवा में गायब हो गए।”

जिसके बाद कोर्ट में दी गई दलीलों में राज्य सरकार ने कहा व्यक्ति के गायब होने की सूचना मिलने के बाद तुरंत पुलिस प्रशासन की ओर से उसे खोजने के लिए पूरी ताकत लगा दी गई थी। एसआईटी का गठन किया गया है। टीबी सप्रू हॉस्पिटल डॉक्टरों और स्टाफ को लापरवाही बरतने के लिए सस्पेंड कर दिया गया है, जहां से व्यक्ति गायब हुआ था। दलील रखने के बाद राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई कि राज्य के शीर्ष अधिकारियों को तलब करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया जाए, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से रोक लगा दी गई।