1993 मुंबई ब्लास्ट: याकूब मेमन की फांसी पर सुप्रीम कोर्ट की रोक
उच्चतम न्यायालय ने 1993 के मुम्बई श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट कांड में मृत्युदंड पाने वाले एकमात्र अपराधी याकुब अब्दुल रजाक मेमन की फांसी पर रोक आज बढ़ा दी और मौत की सजा की समीक्षा की मांग संबंधी उसकी याचिका पर महाराष्ट्र के विशेष कार्यबल (एसटीएफ) और सीबीआई से जवाब तलब किया। खुली अदालत में सुनवाई के […]
उच्चतम न्यायालय ने 1993 के मुम्बई श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट कांड में मृत्युदंड पाने वाले एकमात्र अपराधी याकुब अब्दुल रजाक मेमन की फांसी पर रोक आज बढ़ा दी और मौत की सजा की समीक्षा की मांग संबंधी उसकी याचिका पर महाराष्ट्र के विशेष कार्यबल (एसटीएफ) और सीबीआई से जवाब तलब किया।
खुली अदालत में सुनवाई के दौरान न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए आर दवे की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि मेमन की फांसी पर इस समीक्षा याचिका के लंबित रहने के दौरान रोक लगी रहेगी। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 28 जनवरी, 2015 की तारीख तय की ।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम नोटिस जारी कर रहे हैं। ’’ इस पीठ में न्यायमूर्ति दवे के अलावा न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ हैं।
मेमन के वकील ने कहा कि न तो निचली अदालत ने और न ही शीर्ष अदालत ने उसे फांसी के फंदे पर भेजने के खास कारण बताए हैं।
मेमन ने अपने वकील के माध्यम से कहा, ‘‘मेरी दोषसिद्धि कई आरोपियों की उन स्वाकारोक्ति पर आधारित है जिनसे वे पलट गए थे। समीक्षा की मांग वाले फैसले में उन तथ्यों एवं सबूतों का उल्लेख नहीं है जिससे पता चलता हो कि मैंने आतंकवादी गतिविधियों में हिस्सा लिया।’’

मेमन के वकील ने यह भी आरोप लगाया कि इस कांड में पूरा फैसला सुनाये जाने से पहले ही उनके मुवक्किल को टाडा अदालत ने दोषी ठहराकर मृत्युदंड सुना दिया, अतएव उसकी दोषसिद्धि वैध नहीं है।
पहले इन समीक्षा याचिकाओं पर चैम्बर्स में ही निर्णय होता था लेकिन बाद में शीर्ष अदालत ने फैसला दिया कि यदि मृत्युदंड के विरूद्ध ऐसे अनुरोध आते हैं तो उस पर खुली अदालत में सुनवाई हो।
शीर्ष अदालत ने 26 सितंबर को मेमन के अनुरोध पर महाराष्ट्र सरकार एवं अन्य से जवाब तलब किया था। मेमन ने मृत्युदंड के विरूद्ध अपनी समीक्षा याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने मेमन की फांसी पर स्थगन लगा दिया।
उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने दो जून को व्यवस्था दी थी कि लंबी न्यायिक प्रक्रिया के दौरान सलाखों के पीछे गुजारे गए साल मृत्युदंड को कम कर उसे उम्रकैद में बदलने का आधार नहीं हो सकते और ऐसे कैदियों की समीक्षा याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई होनी चाहिए।
मेमन ने इसी फैसले का फायदा उठाते हुए अपने मामले की सुनवाई खुली अदालत में करने की मांग की।
मेमन मौत की सजा सुनाए गया ऐसा तीसरा व्यक्ति है जो अपनी समीक्षा याचिका की खुली अदालत में सुनवाई की मांग के साथ उच्चतम न्यायालय पहुंचा।