रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की वजह से इस साल प्रवासी पक्षी करीब डेढ़ महीना देरी से आए हैं। हर साल यह प्रवासी पक्षी साइबेरिया और यूरोपीय देशों से अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में आ जाते थे लेकिन इस बार यह प्रवासी पक्षी नवंबर के आखिरी सप्ताह में उत्तराखंड आए। इतना ही नहीं इस बार इन पक्षियों की संख्या भी पिछले साल के मुकाबले काफी अंतर देखने को मिल रहा है।
पक्षी वैज्ञानिकों का मानना है कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण इन प्रवासी पक्षियों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। रूस और यूक्रेन के बीच इस दौरान जो गोलाबारी हुई उससे कई जंगल जले और शहरों में भी हवाई हमले होने के कारण कई शहर मटियामेट में हो गए, जिनके कारण कई प्रवासी पक्षी इस हमले में मारे गए। वहीं, कई पक्षियों का तो नामोनिशान ही मिट गया और अब प्रवासी पक्षियों के अस्तित्व पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
युद्ध से प्रवासी पक्षियों के लिए सबसे ज्यादा खतरा बढ़ गया है, जो साइबेरिया और ठंडे यूरोपीय देशों से जाड़ों में प्रवास के लिए उत्तराखंड आते हैं और उत्तराखंड में सर्दियां कम होने के बाद वे वापस अपने देशों को चले जाते हैं। युद्ध के कारण उन्हें उत्तराखंड में आने और वापस अपने देश लौटने में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, जिस कारण कई प्रवासी पक्षी बीच में ही दम तोड़ रहे हैं। पक्षी विज्ञानियों के अनुसार प्रवासी पक्षी मध्य एशिया होते हुए भारतीय उपमहाद्वीप में आते हैं और यूरोप समेत कई देशों से होते हुए वापस जाते हैं। युद्ध के कारण इन्हें बमबारी और लड़ाकू विमानों और मिसाइल से हो रही बमबारी का सामना करना पड़ता है जो इनके उत्तराखंड आने और वापस घर जाने के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट बना हुआ है और उनकी यात्रा बहुत जोखिम भरी हो गई है।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के जंतु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर अंतरराष्ट्रीय पक्षी विज्ञानी डाक्टर दिनेश भट्ट का कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध ने प्रवासी पक्षियों का जीवन दूभर कर दिया है और इस युद्ध में जनहानि के साथ-साथ साइबेरियन और यूरोपियन पक्षियों को भी जान गंवानी पड़ी है। कई पक्षियों का जीवन लुप्तप्राय है इसीलिए युद्ध प्रवासी पक्षियों के लिए भी सबसे नुकसानदायक साबित हो रहा है। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में हर साल सर्दियों में प्रवासी पक्षी मीलों लंबा सफर तय करके अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में आ जाते थे परंतु रूस और यूक्रेन के युद्ध के चलते प्रवासी पक्षी इस बार नवंबर के आखिरी सप्ताह में उत्तराखंड में नदियों के तट पर देखे गए हैं और इस साल इनकी संख्या भी बहुत कम है।
इस बार हरिद्वार की गंगा तट देहरादून के आसन बांध क्षेत्र में इनकी तादाद 15 से 50 के बीच ही आंकी गई है जबकि पिछले कई वर्षों में इन पक्षियों की तादाद 10 गुना ज्यादा देखने को मिलती थी प्रवासी पक्षियों में मार्गगैंजर, सुर्खाब, पलकोवा , ग्रेलैग गूज, कामन शेल्डक, रूडी शेल्डक, मलार्ड, नार्दन पिनटेल, नार्दन शोवलर, गार्गेनी, कामन पोचार्ड और रेड क्रेस्टेड पोचार्ड समेत कई प्रजातियां के प्रवासी पक्षी आते हैं। मगर अब इन पक्षियों की तादाद लगातार कम होती जा रही है।
रूस, यूक्रेन, साइबेरिया व मलेशिया आदि देशों में नवंबर से फरवरी तक बर्फ गिरने लगती है। इस अवधि में यहां रहने वाले पक्षियों के सामने प्रजनन व खाने पीने की समस्या आती है। ये पक्षी भारत आ जाते हैं, जिनके लिए उत्तराखंड सबसे ज्यादा माकूल जगह है। इस साल जैसे-तैसे कुछ प्रवासी पक्षी रूस-यूक्रेन युद्ध से अपनी जान बचा कर भारत पहुंचे हैं। इन दिनों रूस और यूक्रेन का वातावरण बम धमाकों के कारण बेहद जहरीला हो चुका है। वहां का वायुमंडल जिस तरह विषैला हो गया है, वह इंसानों के साथ ही पक्षियों के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है।
पक्षी वैज्ञानिकों का मानना है कि रूस और यूक्रेन से आने वाले पक्षियों की संख्या में जहां गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, चीन और उसके आसपास से आने वाले प्रवासी पक्षियों की तादाद पहले के मुकाबले बढ़ी है। इसके साथ ही वायुमंडल के तापमान में वृद्धि भी प्रवासी पक्षियों खतरा पैदा कर रहा है यदि यह क्रम इसी तरह चलता रहा तो प्रवासी पक्षियों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा।