राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी ने शुक्रवार को एक तरह से अपने रुख से पलटते हुए कहा कि समलैंगिकता सामाजिक रूप से अनैतिक कृत्य है। इसे मनोवैज्ञानिक मामले की तरह देखे जाने की जरूरत है और समलैंगिक विवाहों पर पाबंदी होनी चाहिए। संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने एक दिन पहले ही कहा था कि समलैंगिकता अपराध नहीं है। शुक्रवार को उन्होंने कई ट्वीट कर यह साफ करने की कोशिश की कि इसका मतलब यह नहीं है कि इसे महिमामंडित किया जाए।
उन्होंने ट्विटर में लिखा कि समलैंगिकता अपराध नहीं है, लेकिन हमारे समाज में यह सामाजिक अनैतिक कृत्य है। इसमें दंडित करने की नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक मामला मानकर चलने की जरूरत है। होसबाले ने कहा कि समलैंगिकता को लेकर कोई अपराधीकरण नहीं, न ही कोई महिमामंडन की सोच होनी चाहिए। समलैंगिक विवाह समलैंगिकता को संस्थागत रूप देना है। इसे रोका जाना चाहिए।
गुरुवार को जब एक कार्यक्रम में शामिल हुए होसबाले से सवाल किया गया था कि क्या समलैंगिकता को आइपीसी की धारा 377 के तहत अपराध माना जाना चाहिए, उन्होंने कहा था कि मुझे नहीं लगता कि समलैंगिकता को तब तक अपराध माना जाए जब तक कि यह समाज में दूसरे लोगों के जीवन को प्रभावित नहीं करता हो।
उन्होंने यह भी कहा था कि यौन प्राथमिकताएं निजी और व्यक्तिगत हैं। संघ सार्वजनिक मंच पर अपने विचार क्यों व्यक्त करे? संघ का इस पर कोई विचार नहीं है। लोगों को अपना रास्ता तय करना है। संघ में व्यक्तिगत यौन कामनाओं पर चर्चा नहीं की जाती और हम इस बारे में चर्चा करना भी नहीं चाहते हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में समलैंगिकता को अप्राकृतिक और आपराधिक कृत्य बताया गया है जिसमें अधिकतम 10 साल की जेल का प्रावधान है। इस संबंध में वैश्विक चलन को देखते हुए देश में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने की मांगें उठती रही हैं।