सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बेंच को भेजा सबरीमाला केस, मंदिर में महिलाओं को एंट्री देने के फैसले के खिलाफ डाली गई थी 65 रिव्यू पिटीशन
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पिछला फैसला बना रहेगा। शीर्ष अदालत का कहना है यह केरल सरकार को देखना है कि उसे फैसला लागू करना है या नहीं।

अपूर्वा विश्वनाथ
सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला के मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया है। महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में एंट्री के मामले में सुनाए गए फैसले के खिलाफ 65 रिव्यू पिटीशन दाखिल की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पिछला फैसला बना रहेगा। सरकार का कहना है यह सरकार देखे कि उसे अमल करना है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 के बहुमत से इस मामले को 7 जजों की पीठ को भेजा। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दी थी। इसके बाद केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार ने कोर्ट के फैसले को लागू करने का फैसला किया था, इससे श्रद्धालुओं और दक्षिणपंथी संगठनों के विरोध प्रदर्शन से राज्य में माहौल गर्मा गया था।
सुप्रीम कोर्ट का आनेवाला फैसला केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की अगुवाई वाली एलडीएफ सरकार के लिए भी अहम है क्योंकि बस तीन दिन बाद सबरीमला में वार्षिक तीर्थयात्रा शुरू होने जा रही है। केरल में पथनमथिट्टा जिले के पश्चिमी घाटी पर संरक्षित वनक्षेत्र में स्थित इस पहाड़ी धार्मिक स्थल के द्वार 16 नवंबर की शाम को दो महीने तक चलने वाले मंडलम मकराविलाक्कू के लिए खोले जायेंगे।
पी विजयन ने निर्बाध तीर्थयात्रा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न विभागों द्वारा की जा रही तैयारियों का शनिवार को जायजा लिया था। राज्य के पुलिस महानिदेशक लोकनाथ बेहरा ने कहा है कि इस तीर्थयात्रा मौसम के दौरान कड़ी सुरक्षा होगी। दो महीने की तीर्थयात्रा के दौरान सबरीमला में भगवान अयप्पा के मंदिर और उसके आसपास 10,000 से अधिक पुलिसकर्मी तैनात किये जाएंगे।
केरल भाजपा ने उम्मीद जतायी है कि समीक्षा याचिकाओं पर आदेश श्रद्धालुओं के पक्ष में आएगा जबकि मंदिर का प्रबंधन संभालने वाले स्वायत्त निकाय त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड ने लोगों से फैसले को स्वीकार करने की अपील की है, चाहे यह (फैसला) जो भी हो।
पिछले साल 28 सितंबर, 2018 को उस पाबंदी को हटा लिया था जिसमें 10 से 50 साल तक की उम्र की महिलाओं के अयप्पा मंदिर में प्रवेश पर रोक थी और सदियों पुरानी इस धार्मिक परंपरा को अवैध और असंवैधानिक करार दिया था। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 65 रिव्यू पिटीशन दायर किए गए थे।
(भाषा इनपुट के साथ)
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