Republic Day 2023: देशभर में गुरुवार (26 जनवरी 2023) को 74वां गणतंत्र दिवस (Republic Day) मनाया जा रहा है। आज दिल्ली के ऐतिहासिक कर्तव्य पथ (Kartavya Path) पर भारत की जीवंत सांस्कृतिक विरासत, आर्थिक और सामाजिक प्रगति को दर्शाने वाली कुल 23 झांकियां परेड का हिस्सा होंगी। 17 झांकियां जहां देश के अलग-अलग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की होंगी, वहीं 6 सरकारी मंत्रालयों और विभागों की होंगी। इस दौरान असम की झांकी में अहोम योद्धा लचित बोड़फुकन (Lachit Borphukan) को एक नाव पर और मां कामाख्या मंदिर के दृश्य को दिखाया गया है।
Mughals को चटाई थी धूल
पूर्वोत्तर में मुगलों को धूल चटाने वाले लचित बोड़फुकन अपने जज्बे के लिए जाने जाते थे, जिन्होंने कई बार मुगलों को युद्ध में हराया था। लचित बोरफुकन को ‘पूर्वोत्तर का शिवाजी’ भी कहा जाता है। लचित बोड़फुकन अहोम साम्राज्य की शाही सेना के जनरल थे, उन्होंने 1671 में सराईघाट की लड़ाई में मुगलों को करारी शिकस्त दी थी।
दरअसल, मध्यकालीन भारत में असम को मुगल सम्राट तमाम कोशिशों के बावजूद भी अपनी सल्तनत का हिस्सा नहीं बना सके थे। कई सदियों तक हिन्दुस्तान के अलग-अलग प्रांतों पर राज करने वाले मुगल असम को छू तक नहीं सके थे। असम की धरती गवाह है मुगलों की सबसे शर्मनाक हार की। सराईघाट के युद्ध के बाद मुगल ज़्यादा सालों तक संभल नहीं पाए।
अहोम साम्राज्य (Ahom Dynasty) के खिलाफ सराईघाट की लड़ाई में मुगलों को मिली थी हार
लचित ने मुगलों के कब्जे से गुवाहाटी को छुड़ा कर उस पर फिर से अपना कब्जा कर लिया था और मुगलों को गुवाहाटी से बाहर धकेल दिया था। इसी गुवाहाटी को फिर से पाने के लिए मुगलों ने अहोम साम्राज्य के खिलाफ सराईघाट की लड़ाई लड़ी थी। इस युद्ध में मुगल सेना 1,000 से अधिक तोपों के अलावा बड़े स्तर पर नौकाओं का उपयोग किया था लेकिन फिर भी लचित बोड़फुकन की रणनीति के आगे उनकी एक नहीं चली थी।
लचित ने सराईघाट में मुगलों को हराने की योजना बनायी थी। इस युद्ध से पहले ही लचित बुरी तरह बीमार पड़ गए थे लेकिन युद्ध क्षेत्र में जब अहोम कमज़ोर पड़ने लगे तब लचित बीमार होते हुए भी युद्धभूमि में पहुंचे और उन्हें देखकर सैनिकों में नई ऊर्जा भर गई। जिसके बाद अहोम सैनिकों ने मुंहतोड़ जवाब देना शुरू किया और मुगलों को मानस नदी तक पीछे हटना पड़ा।
महान योद्धा और राजनेता मोमाई तमुली बोरबरुआ के बेटे लचित बोड़फुकन का जन्म 24 नवंबर, 1622 को हुआ था। वर्तमान में इस तारीख को असम के निवासी लचित दिवस के रूप में मनाते हैं।