कर्नाटक: एमएसपी से ज़्यादा दाम पर किसानों से रिलायंस रिटेल लिमिटेड ने की हज़ार क्विंटल चावल की डील
कर्नाटक के रायचूर जिले में रिलायंस ने किसानों से 1000 क्विंटल सोना मंसूरी धान खरीदने का अनुबंध किया है। सोना मंसूरी को खरीदने के लिए रिलायंस ने 1950 रूपये प्रति क्विंटल का दाम रखा है जबकि सरकार का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1868 रुपए है।

APMC एक्ट में संशोधन होने के बाद कर्नाटक में पहली बार किसी कॉर्पोरेट कंपनी और किसानों के बीच फसल को लेकर करार हुआ है। कर्नाटक के रायचूर जिले में रिलायंस ने किसानों से 1000 क्विंटल सोना मंसूरी धान खरीदने का अनुबंध किया है। सोना मंसूरी को खरीदने के लिए रिलायंस ने 1950 रूपये प्रति क्विंटल का दाम रखा है जबकि सरकार का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1868 रुपए है।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी एक खबर के अनुसार रिलायंस ने स्वास्थ्य फार्मर्स प्रोड्यूसिंग नाम की एक कंपनी के साथ समझौता किया है। स्वास्थ्य फार्मर्स प्रोड्यूसिंग कंपनी से करीब 1100 किसान जुड़े हुए हैं जो धान की फसल उपजाते हैं। इस अनुबध के अनुसार किसानों को प्रतिक्विंटल 1950 रूपये का भुगतान किया जाएगा जो कि सरकार के द्वारा तय किये गए मूल्य से करीब 82 रूपये ज्यादा है। साथ ही इस अनुबंध के अनुसार रिलायंस ने यह शर्त रखी है कि फसल में 16 फीसदी से भी कम नमी रहनी चाहिए।
रिलायंस के साथ अनुबंध करने वाली स्वास्थ्य फार्मर्स प्रोड्यूसिंग कंपनी पहले सिर्फ तेल का व्यापार करती थी लेकिन अब कंपनी ने अन्य फसलों की बिक्री भी शुरू कर दी है। हालाँकि इस अनुबंध के तहत स्वास्थ्य फार्मर्स प्रोड्यूसिंग कंपनी को हर 100 रूपये के ट्रांजैक्शन पर 1.5 प्रतिशत का कमीशन मिलेगा। वहीँ किसानों को फसल को बोरे में करने के अलावा वेयरहाउस तक लाने का खर्च भी खुद ही देना होगा। स्वास्थ्य फार्मर्स प्रोड्यूसिंग कंपनी के द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार फसल की खरीद किये जाने के बाद रिलायंस पहले कंपनी को पेमेंट करेगी। फिर उसके बाद स्वास्थ्य फार्मर्स प्रोड्यूसिंग कंपनी किसानों के खाते में पैसे को जमा करेगी।
न्यूनतम समर्थन मूल्य के ऊपर दाम दिए जाने से भले ही बिचौलिये कंपनियां खुश हों लेकिन किसान संगठन खुश नहीं हैं। स्थानीय किसान संगठन कर्नाटक राज्य रैथा संघ के अध्यक्ष चमारासा मालिपाटिल कहते हैं कि पहले तो कॉर्पोरेट कंपनियां किसानों को एमएसपी से ज्यादा दाम का लालच देगी। जिसकी वजह से एपीएमसी मंडियां तबाह हो जाएँगी। सरकारी मंडियों के तबाह होने के बाद किसानों का असली उत्पीड़न शुरू होगा। इसलिए हमें कॉर्पोरेट कंपनियां के चाल में आने से बचना चाहिए।