भले ही राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने के मसले पर समाजवादी पार्टी समेत सभी क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ खड़े नजर आ रहे हों, लेकिन अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के सवाल पर सभी अचकचा रहे हैं। खास तौर पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने दो टूक कह दिया है कि वे किसी भी सूरत में कांग्रेस का हाथ थाम कर लोकसभा चुनाव के मैदान में नहीं उतरेंगे।
उत्तर प्रदेश में 38 साल से सत्ता पाने को लालायित कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में किसी क्षेत्रीय दल के सहारे की जरूरत है। बावजूद इसके कांग्रेस का विरोध कर के अपनी पार्टी का अस्तित्व खड़ा करने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी कांग्रेस का दामन थामने से तौबा किए हुए हैं। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने पार्टी के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को 2017 के विधानसभा चुनाव में चेताया था कि वह कांग्रेस के साथ किसी भी हाल में गठबंधन करने से परहेज करें। उस वक्त अखिलेश ने नेताजी की बात नहीं मानी। जिसका बड़ा खामियाजा उन्हें विधानसभा चुनाव में हार के रूप में चुकता करना पड़ा।
उधर बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने पहले ही कह रखा है कि वे किसी भी राजनीतिक दल के साथ समझौता कर चुनाव मैदान में नहीं उतरेंगी। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी चिर प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने और उसका चुनाव परिणामों पर असर देखने के बाद बहनजी ने किसी भी राजनीतिक दल के साथ भविष्य में कभी किसी भी तरह का सियासी समझौता करने से तौबा कर ली थी। हालांकि राहुल गांधी की संसद सदस्यता के जाने के मसले पर वे भी उनके स्वर में स्वर मिलाती नजर जरूर आ रही हैं लेकिन उनका ये कथन सिर्फ विरोध तक ही सीमित है।
हाल ही में कोलकाता में हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने कार्यकर्ताओं को दो टूक कहा है कि उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों से समान दूरी बना कर रखेगी। इस बाबत समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य और पार्टी के वरिष्ठ नेता राजेंद्र चौधरी कहते हैं, पार्टी अध्यक्ष ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वे किसी भी हाल में कांग्रेस के साथ किसी भी तरह का चुनाव पूर्व और उसके बाद का समझौता नहीं करेंगे। ऐसे में कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी के गठबंधन का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। उन्होंने कहा कि सपा, अपने पूर्व सहयोगियों के साथ चुनाव मैदान में उतरेगी। ये वे सियासी सहयोगी हैं जो विधानसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी के साथ खड़े थे।
लोकसभा चुनाव के पूर्व कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए किसी मजबूत सहयोगी की जरूरत है। 2017 में सपा के साथ गठबंधन करने के बाद भी वह उसका कोई लाभ उठा पाने में नाकाम साबित हुई। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि अखिर दिल्ली की सल्तनत तक पहुंचने का जो रास्ता उत्तर प्रदेश की जिन 80 लोकसभा सीटों को जीत कर तय किया जाता है, वहां कांग्रेस कैसे मुकाबिल होती है?
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के कांग्रेस के साथ गठबंधन के सवाल पर भारतीय जनता पार्टी के विधान परिषद सदस्य विजय बहादुर पाठक चुटकी लेते हैं। उन्होंने कहा, कोई भी राजनीतिक दल हमेशा चुनावी गठबंधन उसी दल केसाथ करता है जो उससे अधिक ताकतवर हो। जिसका लाभ उसे मिल सके। जहां तक रही कांग्रेस की बात तो उत्तर प्रदश में वह किस हाल में है? यह बात किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में सपा और बसपा का साथ पाने की यदि राहुल गांधी ख्वाहिश पाले हैं तो वह दिवा स्वप्न से अधिक कुछ नहीं।