सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जीएसटी काउंसिल की सिफारिशें केंद्र और राज्य सरकारों के लिए कतई बाध्यकारी नहीं हैं। न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की पीठ ने गुरुवार को इस बारे में अहम फैसला सुनाया। पीठ ने इन सिफारिशों पर निर्देश जारी करते हुए कहा कि ये सिफारिशें जीएसटी (माल एवं सेवाकर) पर कानून बनाने को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के पास एक तरह के अधिकार हैं। अदालत की नजर में काउंसिल की ये सिफारिशें सलाह-परामर्श के तौर पर देखी जानी चाहिए। इनका बस प्रेरक मूल्य है।
उल्लेखनीय है कि संविधान संशोधन के तहत कहा गया था कि जीएसटी काउंसिल का निर्णय केंद्र-राज्य के लिए बाध्य होगा, लेकिन पीठ ने कहा कि काउंसिल का फैसला बाध्यकारी नहीं है, बल्कि इसके अनुरूप केंद्र और राज्य कदम उठा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 279ए का हवाला देते हुए कहा कि इसके अंतर्गत जीएसटी काउंसिल के फैसले केंद्र और राज्य सरकारें मानें, ऐसा जरूरी नहीं है।
अदालत ने कहा है कि जीएसटी में ऐसा कोई भी प्रावधान शामिल नहीं है, जिसमें उन परिस्थितियों का समाधान हो जब केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए कानून में भिन्नता प्रदर्शित होती हो। अगर ऐसी कोई परिस्थिति आती भी है, तो फिर जीएसटी काउंसिल उन्हें उचित सलाह देती है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि संसद और राज्य विधानसभाओं के पास जीएसटी पर कानून बनाने का समान अधिकार है। जीएसटी परिषद इस पर उन्हें उपयुक्त सलाह देने के लिए है। पीठ ने कहा कि भारत एक सहकारी संघवाद वाला देश है। ऐसे में परिषद की सिफारिशें बस सलाह के तौर पर देखी जा सकती हैं और राज्यों-केंद्र सरकार के पास इतना अधिकार है कि वे इसे मानें या न मानें।
उल्लेखनीय है कि जीएसटी परिषद की आगामी बैठक में कसीनो, घुड़दौड़, आनलाइन गेमिंग पर 28 फीसद जीएसटी को लेकर अहम फैसला आ सकता है। इस विषय पर समीक्षा के लिए गठित मंत्रियों की समिति ने अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दे दिया है, जिसे परिषद की अगली बैठक में रखा जाना है। अभी कसीनो, घुड़दौड़ और आनलाइन गेमिंग पर 18 फीसद जीएसटी लगता है।