राजस्थान में मासूमों की मौत का सिलसिला जारी है। कोटा के अस्पताल में सैकड़ों बच्चों के दम तोड़ने के बाद अब बूंदी जिले का अस्पताल भी ‘मौत का कोटा’ बन गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक सिर्फ दिसंबर के महीने में बूंदी जिले के एक अस्पताल में 10 बच्चों की मौत हो गई। 10 मासूम बच्चों की मौत का खुलासा उस वक्त हुआ जब Additional District Collector (ADC) ने बीते शुक्रवार (03-01-2019) अस्पताल का दौरा किया।
हालांकि अब इस खुलासे के बाद बूंदी के इस अस्पताल प्रबंधन ने अपनी सफाई भी पेश की है। प्रबंधन ने इन मौतों के लिए खुद को जिम्मेदार मानने से इनकार कर दिया है और कहा कि बच्चों की मौत अलग-अलग वजहों से हुई है। अस्पताल प्रबंधन ने कहा है कि ‘दिसंबर महीने के दौरान यहां 10 बच्चों की मौत अलग-अलग वजहों से हुई है। इनमें से कई ऐसे बच्चे थे जो दूसरे अस्पताल द्वारा रेफर करने के बाद यहां लाए गए थे…कुछ बच्चे अंडरवेट थे…कुछ को सांस लेने में तकलीफ थी और इनमें से कुछ बच्चों ने दूषित पानी भी पी लिया था।
अस्पताल के ड्यूटी इनचार्ज हितेश सोनी ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि यहां लाए गए बच्चे काफी गंभीर गंभीर हालत में आए थे। बहरहाल एडीसी ने इस पूरी घटना की जानकारी ली है और अस्पताल प्रबंधन को साफ-सफाई बरतने तथा इलाज में किसी भी तरह की कोताही ना बरतने की सख्त हिदायत भी दी है।
आपको बता दें कि राज्य के कोटा जिले के जेके लोन अस्पताल में सैकड़ों बच्चों की हुई मौत के बाद यह बात सामने आई थी कि अस्पताल में चिकित्सक और अन्य जरुरी कर्मचारियों की भारी कमी थी। इसके अलावा अस्पताल के शिशु वार्ड में गंदगी की तस्वीरें भी सामने आई थीं। बच्चों की मौत को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ नोटिस जारी किया है और जवाब मांगा है।
इस पूरे मामले पर राज्य सरकार में कोटा के प्रभारी मंत्री प्रताप सिंह ने कहा है कि ‘हमारा मानना है कि मौतों को नियंत्रित करना अस्पताल, डॉक्टरों और नर्सों की जिम्मेदारी है। क्या परेशानी है। उपकरणों की कमी है तो आपको खरीदना चाहिए था। इसे खरीदने के लिए आपके पास लगभग 6 करोड़ रुपए थे और इतने उपकरणों की तो जरूरत भी नहीं थी।’

