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क्या है लिली थॉमस केस? सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला जिसने राहुल गांधी की संसद सदस्यता पर डाला असर

राहुल गांधी को उनकी ‘मोदी सरनेम टिप्पणी’ पर मानहानि मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उनकी संसद सदस्यता रद्द कर दी गई है।

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कांग्रेस सांसद राहुल गांधी। (फोटो सोर्स: @INCIndia)

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को उनकी ‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद लोकसभा के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया है। सूरत की एक अदालत ने गुरुवार (23 मार्च) को कांग्रेस नेता राहुल गांधी को 2019 के एक मानहानि मामले में मोदी सरनेम पर उनकी टिप्पणी पर दो साल की सजा सुनाई थी। हालांकि, राहुल गांधी को उसी दिन जमानत भी मिल गयी थी।

राहुल गांधी IPC की धारा 499 और 500 के तहत दोषी

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एचएच वर्मा की अदालत ने राहुल गांधी को IPC की धारा 499 और 500 के तहत दोषी ठहराया था। 1951 के जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(3) के अनुसार, दो साल या उससे अधिक की सजा वाले अपराध के लिए मिली सजा के चलते सदन से अयोग्य घोषित किया जा सकता है। वहीं, RPA की धारा 8(4) में कहा गया है कि दोषसिद्धि की तारीख से अयोग्यता तीन महीने बीत जाने के बाद प्रभावी होती है। उस अवधि के भीतर दोषी विधायक सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सजा के खिलाफ अपील दायर कर सकते थे।

हालांकि, इस प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट के 2013 के ‘लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ के फैसले में असंवैधानिक घोषित करते हुए खारिज कर दिया गया था।

क्या है ‘लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ केस?

2005 में केरल के एक वकील लिली थॉमस और एनजीओ लोक प्रहरी द्वारा अपने महासचिव एसएन शुक्ला के माध्यम से शीर्ष अदालत के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में आरपीए की धारा 8 (4) को चुनौती दी गई थी। यह धारा सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग अपीलों के कारण सजायाफ्ता विधायकों को अयोग्यता से बचाता है।

इस दलील में सजायाफ्ता राजनेताओं को चुनाव लड़ने या आधिकारिक सीट रखने से रोककर आपराधिक तत्वों से भारतीय राजनीति को साफ करने की मांग की गई थी। इसने संविधान के अनुच्छेद 102(1) और 191(1) की ओर ध्यान आकर्षित किया था। अनुच्छेद 102(1) संसद के किसी भी सदन की सदस्यता के लिए अयोग्यता निर्धारित करता है और अनुच्छेद 191(1) राज्य की विधान सभा या विधान परिषद की सदस्यता के लिए अयोग्यता निर्धारित करता है। दलील में तर्क दिया गया कि ये प्रावधान केंद्र को अयोग्यता से संबंधित अन्य नियम जोड़ने का अधिकार देते हैं।

इस फैसले से पहले सजायाफ्ता सांसद आसानी से अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर कर सकते थे और अपनी आधिकारिक सीटों पर बने रह सकते थे।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

10 जुलाई, 2013 को सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस एके पटनायक और एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने कहा कि “संसद के पास अधिनियम की धारा 8 के सब सेक्शन (4) और को अधिनियमित करने की कोई शक्ति नहीं है। यह संविधान के अधिकार से बाहर है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर संसद या राज्य विधानमंडल के किसी मौजूदा सदस्य को आरपीए की धारा 8 की उप-धारा (1), (2), और (3) के तहत किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है, तो वह अयोग्य घोषित किए जाएंगे।

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First published on: 24-03-2023 at 15:01 IST
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