भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने याचिकाकर्ता स्वामी को निर्देश दिया कि वह इससे जुड़े अतिरिक्त सबूत मंत्रालय को दे सकते हैं। राम सेतु, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट से पांबन द्वीप और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट से दूर मन्नार द्वीप के बीच चूने के पत्थरों की एक श्रृंखला है। इसे आदम का पुल भी कहा जाता है।
भाजपा नेता स्वामी ने कहा है कि वह मुकदमे का पहला दौर जीत चुके हैं। जिसके तहत केंद्र सरकार ने राम सेतु के अस्तित्व को स्वीकार किया था। उन्होंने कहा कि संबंधित केंद्रीय मंत्री ने उनकी मांग पर विचार करने के लिए 2017 में बैठक बुलाई थी लेकिन बाद में कुछ नहीं हुआ। भाजपा नेता ने इससे पहले की यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में विवादास्पद सेतुसमुद्रम पोत मार्ग परियोजना के खिलाफ अपनी जनहित याचिका में रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने का मुद्दा उठाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में रामसेतु पर परियोजना के लिए काम रोक दिया था। तब केंद्र सरकार ने कहा था कि उसने परियोजना के सामाजिक-आर्थिक नुकसान पर विचार किया और वह राम सेतु को क्षति पहुंचाए बिना पोत मार्ग परियोजना का दूसरा मार्ग खोजना चाहती है। अदालत ने तब सरकार को नया हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
गुरुवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सालिसिटर जनरल तुषार मेहता के बयानों को रिकार्ड पर ले लिया।मेहता ने कहा कि संस्कृति मंत्रालय में इस प्रस्ताव पर फैसले के लिए विचार जारी है। सुब्रमण्यम स्वामी को कहा है कि वे अपने दस्तावेज व सामग्री सरकार को दे सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी का निस्तारण कर दिया।