लोकसभा चुनावों के दौरान बालाकोट एयर स्ट्राइक और पुलवामा आतंकी हमले का मुद्दा लगातार राजनीति में छाया हुआ है। राजनैतिक पार्टियां पूरे जोर-शोर से इन मुद्दों को उठा रही हैं, लेकिन एक वक्त पाकिस्तान की जेलों में कैद रहे भारतीय जवान और पठानकोट आतंकी हमले में जान गंवाने वाले जवानों के परिजन इससे निराश हैं। 1965 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई में बंदी बना लिए गए और 5 महीने पाकिस्तान की जेलों में बिताने वाले रिटायर्ड कर्नल बलदेव सिंह चहल से जब इस बारे में द इंडियन एक्सप्रेस ने बात की तो उन्होंने कहा कि ‘सभी राजनैतिक पार्टियां भारतीय सुरक्षा बलों की बहादुरी की घटनाओं का क्रेडिट लेने की कोशिश करती हैं। हर युद्ध के बाद ऐसा होता है कि राजनैतिक पार्टियां इसका फायदा उठाने की कोशिश करती हैं। 1971 की लड़ाई, कारगिल लड़ाई और अब सर्जिकल स्ट्राइक में भी सत्ताधारी पार्टी ने ऐसा ही किया था। रिटायर्ड कर्नल ने कहा कि राजनैतिक पार्टियों को सेना की इन गोपनीय कार्रवाईयों को जनता के सामने इस तरह लीक नहीं करना चाहिए।’
रिटायर्ड कर्नल ने कहा कि ‘आर्म्ड फोर्सेस, देश के सुरक्षाबल हैं, ना कि किसी राजनैतिक पार्टी के।’ 1965 की लड़ाई के एक अन्य युद्धबंदी रिटायर्ड ब्रिगेडियर कंवलजीत सिंह का कहना है कि एक जवान देश के लिए लड़ता है, ना कि किसी राजनैतिक पार्टी के लिए। वह देशभक्त है ना कि किसी राजनैतिक पार्टी का सदस्य, फिर क्यों उसका नाम राजनैतिक फायदे के लिए लिया जाता है? उन्होंने कहा कि राजनैतिक पार्टियों को सुरक्षा बलों को तो कम से कम छोड़ देना चाहिए, वरना इसके परिणाम काफी गंभीर हो सकते हैं।
पठानकोट आतंकी हमले में शहीद होने वाले कुलवंत सिंह की पत्नी हरभजन कौर का कहना है कि राजनैतिक पार्टियों को शहीदों के नाम पर वोट नहीं मांगने चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार ने कुलवंत सिंह के नाम पर एक गेट और उनके बेटे को नौकरी देने का वादा किया गया था, लेकिन अभी तक ये वादे अधूरे हैं। कुलवंत सिंह की तरह ही फतेह सिंह भी पठानकोट हमले में शहीद हुए थे। इनके परिजनों का भी कहना है कि सुरक्षाबलों को राजनीति में नहीं घसीटा जाना चाहिए। साल 2017 में पाकिस्तान की सीमा पर गोलीबारी में शहीद हुए बख्तावर सिंह के परिजनों का कहना है कि राजनेता शहीद सैनिकों को भूल जाते हैं और सिर्फ राजनैतिक फायदे के वक्त ही उन्हें उनकी याद आती है।