इसकी वजह से देश के सामर्थ्य को कमतर आंका गया। उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकारों ने ‘दुर्गम और अप्रासंगिक’ मान कर हिमालयी, पूर्वोत्तर और द्वीपीय क्षेत्रों की दशकों तक उपेक्षा की और उनके विकास को नजरअंदाज किया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन 23 जनवरी पराक्रम दिवस के अवसर पर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के 21 सबसे बड़े द्वीपों का नामकरण परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर करने के बाद प्रधानमंत्री ने यह भी आरोप लगाया कि आजादी के बाद देश के स्वाधीनता आंदोलन के इतने बड़े नायक को भुला देने का प्रयास किया गया। कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल अनिल चौहान, तीनों रक्षा सेवाओं के प्रमुख, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के उपराज्यपाल देवेंद्र कुमार जोशी सहित कई अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।
नेताजी की याद में उन्होंने कहा, ‘जिन सुभाष चंद्र बोस को आजादी के बाद भुला देने का प्रयास हुआ, आज देश उन्हें पल-पल याद कर रहा है।’ इस कार्यक्रम में वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से हिस्सा ले रहे प्रधानमंत्री ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप पर बनाए जाने वाले नेताजी राष्ट्रीय स्मारक के प्रतिरूप का भी उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘चाहे हमारे हिमालयी राज्य हों, विशेषकर पूर्वोत्तर के राज्य हों या फिर अंडमान निकोबार जैसे समुद्री द्वीप क्षेत्र- इन्हें लेकर यह सोच रहती थी कि ये तो दूरदराज के दुर्गम और अप्रासंगिक इलाके हैं।
इसी सोच के कारण ऐसे क्षेत्रों की दशकों तक उपेक्षा हुई। उनके विकास को नजरअंदाज किया गया। अंडमान निकोबार द्वीप समूह इसका भी साक्षी रहा है।’ प्रधानमंत्री ने सिंगापुर, मालदीव और सेशेल्स का उदाहरण देते हुए कहा कि अपने संसाधनों के सही इस्तेमाल से ये देश और द्वीपीय क्षेत्र पर्यटन के आकर्षण का केंद्र बन गए हैं और आज पूरी दुनिया से लोग इन देशों में पर्यटन के लिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा ही सामर्थ्य भारत के द्वीपों के पास भी है जो दुनिया को बहुत कुछ दे सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि यहां के द्वीप हमारी समृद्ध आदिवासी परंपरा की धरती भी रही हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में यहां पर्यटन के और असीम अवसर पैदा होंगे।
इस द्वीप समूह में इंटरनेट सेवाओं के विस्तार कार्यों का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि अतीत में अंडमान निकोबार द्वीप समूह ने आजादी की लड़ाई को नई दिशा दी थी, उसी तरह भविष्य में यह क्षेत्र देश के विकास को नई गति देगा। उन्होंने कहा, ‘मुझे विश्वास है कि हम एक ऐसे भारत का निर्माण करेंगे जो सक्षम होगा, सामर्थ्यवान होगा और आधुनिक विकास की बुलंदियों को छूएगा।’ अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सबसे बड़े द्वीप का नामकरण प्रथम परमवीर चक्र विजेता के नाम पर किया गया। इसी प्रकार आकार की दृष्टि से अन्य द्वीपों का नामकरण किया गया।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘इन 21 द्वीपों को अब परमवीर चक्र विजेताओं के नाम से जाना जाएगा। आज के इस दिन को आजादी के अमृत काल के एक महत्त्वपूर्ण अध्याय के रूप में आने वाली पीढ़ियां याद करेंगी। हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए ये द्वीप एक चिरंतर प्रेरणा का स्थल बनेंगे।’ उन्होंने कहा कि ये काम देशहित में बहुत पहले हो जाने थे, क्योंकि जिन देशों ने अपने नायक-नायिकाओं को समय रहते जनमानस से जोड़ा वो विकास और राष्ट्र निर्माण की दौड़ में बहुत आगे गए।
इस अवसर पर शाह ने कहा कि पूरे विश्व में किसी भी देश ने अपने देश के लिए लड़ने वाले जवानों के नाम पर अपने द्वीपों का नाम रख कर उनको सम्मानित करने का काम नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘आज भारत के प्रधानमंत्री की यह पहल जिसके तहत अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के 21 बड़े द्वीपों को हमारे परमवीर चक्र विजेताओं के नाम के साथ जोड़ कर, उनकी स्मृति को जब तक यह पृथ्वी रहेगी तब तक चिरंजीव करने का प्रयास सेना का उत्साह बढ़ाएगा।’ शाह ने अंडमान स्थित सेल्युलर जेल को आजादी की लड़ाई का एक बहुत बड़ा तीर्थ स्थान बताया और कहा कि देश के इसी हिस्से को सबसे पहले स्वतंत्रता प्राप्त होने का सम्मान मिला।
आरएसएस और नेताजी दोनों का लक्ष्य देश को महान राष्ट्र बनाना : भागवत
कोलकाता, भाषा : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को कहा कि उनके दक्षिणपंथी संगठन और नेताजी सुभाष चंद्र बोस का लक्ष्य एक ही है-‘भारत को एक महान राष्ट्र बनाना’। आरएसएस और स्वतंत्रता सेनानी की विचारधारा समान नहीं होने को लेकर जारी बहस के बीच भागवत ने यह बयान दिया है। आलोचकों का कहना है कि नेताजी धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करते थे, जो कि आरएसएस की हिंदुत्व विचारधारा के विपरीत है।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी के योगदान की सराहना करते हुए भागवत ने सभी से बोस के गुणों व शिक्षाओं को आत्मसात करने और देश को विश्व गुरु बनाने की दिशा में काम करने का आग्रह किया।उन्होंने कहा, हम नेताजी को केवल इसलिए याद नहीं करते क्योंकि हम स्वतंत्रता संग्राम में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए उनके आभारी हैं बल्कि साथ ही यह भी हम सुनिश्चित करते हैं कि उनके गुणों को भी आत्मसात करें। उनका भारत को महान बनाने का सपना अब भी पूरा नहीं हुआ है। हमें इसे हासिल करने के लिए काम करना होगा।
भागवत ने कहा कि स्थिति और रास्ते अलग हो सकते हैं, लेकिन मंजिल एक ही है। उन्होंने कहा, सुभाष बाबू (नेताजी) पहले कांग्रेस से जुड़े थे और उन्होंने ‘सत्याग्रह’ व ‘आंदोलन’ के मार्ग का अनुसरण किया, लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि यह काफी नहीं है और स्वतंत्रता के लिए लड़ने की जरूरत है तो उन्होंने इसके लिए काम किया। रास्ते अलग-अलग हैं लेकिन लक्ष्य एक हैं। आरएसएस प्रमुख ने कहा, अनुसरण करने के लिए सुभाष बाबू के आदर्श हमारे सामने मौजूद हैं। उनके जो लक्ष्य थे, वही हमारे भी लक्ष्य हैं। उन्होंने कहा कि नेताजी ने कहा था कि भारत को दुनिया के लिए काम करना चाहिए और हमें यही लक्ष्य हासिल करने के लिए काम करना है।