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संभव है तपेदिक का खात्मा, सरकार का 2025 तक भारत को टीबी मुक्त देश बनाने का लक्ष्य

इस वैश्विक महामारी के जानलेवा परिणामों के प्रति लोगों को जागरूक करने तथा इसे जड़ से खत्म करने के प्रयास तेज करने के उद्देश्य से प्रति वर्ष 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता और डब्लूएचओ के तत्त्वाधान में विश्वभर में कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं।

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शिमला में रिज पर विश्व क्षय रोग दिवस टीबी का प्रतीक बनाते छात्र। (फोटो- ललित कुमार इंडियन एक्सप्रेस)

योगेश कुमार गोयल

सरकार का लक्ष्य भारत को 2025 तक टीबी मुक्त बनाना है और यह दावा भी किया जा रहा है कि देश में टीबी से मौतों के आंकड़े कम होते जा रहे हैं। देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य बनाकर कार्य करना निस्संदेह बड़ी पहल है, लेकिन केवल दो वर्षों की शेष अवधि में इस कठिन लक्ष्य तक पहुंचना आसान नहीं लगता। तपेदिक, जिसे टीबी, क्षय रोग या राजरोग के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी संक्रामक बीमारी है, जो माइको ट्यूबरक्युलोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। वैसे तो टीबी बाल और नाखूनों को छोड़ कर शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है, लेकिन इसका ज्यादातर असर फेफड़ों पर होता है।

विशेषज्ञों के मुताबिक केवल फेफड़ों की टीबी ही संक्रामक होती है

टीबी से पीड़ित व्यक्ति के खांसने-छींकने के दौरान मुंह और नाक से निकलने वाली बूंदों के जरिए यह बीमारी फैलती है। हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक केवल फेफड़ों की टीबी ही संक्रामक होती है, शरीर के अन्य हिस्सों में यह संक्रामक नहीं होती। बीमारी को खतरनाक इसलिए माना जाता है, क्योंकि यह शरीर के जिस हिस्से में होती है, धीरे-धीरे उस हिस्से को बेकार करना शुरू कर देती है।

टीबी अब भी दुनिया की सबसे घातक संक्रामक जानलेवा बीमारियों में से एक

कुछ दशक पहले टीबी को एक लाइलाज बीमारी माना जाता था, लेकिन अब सही समय पर इसका समुचित इलाज कराए जाने से इसका पूरी तरह निदान संभव है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार टीबी अब भी दुनिया की सबसे घातक संक्रामक जानलेवा बीमारियों में से एक है और दुनिया भर में प्रतिदिन करीब चार हजार लोग इससे जान गंवा देते हैं।

वर्ष 2019 में भारत में टीबी के चौबीस लाख से ज्यादा मरीज थे

प्रतिदिन करीब तीस हजार लोग इस बीमारी की चपेट में आ जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार दुनिया की एक तिहाई आबादी टीबी के बैक्टीरिया से संक्रमित है, जिसमें केवल पांच से पंद्रह फीसद लोग ही बीमार पड़ते हैं, जबकि शेष संक्रमितों को न तो टीबी की बीमारी होती है और न ही उनके जरिए यह संक्रमण दूसरों में फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 2020 में दुनिया भर में करीब एक करोड़ लोग तपेदिक के शिकार हुए थे। वर्ष 2019 में भारत में टीबी के चौबीस लाख से ज्यादा मरीजों की संख्या दर्ज की गई थी।

इस वैश्विक महामारी के जानलेवा परिणामों के प्रति लोगों को जागरूक करने तथा इसे जड़ से खत्म करने के प्रयास तेज करने के उद्देश्य से प्रति वर्ष 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता और डब्लूएचओ के तत्त्वाधान में विश्वभर में कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं।

24 मार्च, 1882 को एक जर्मन चिकित्सक और माइक्रोबायोलाजिस्ट डा राबर्ट कोच ने इस जानलेवा बीमारी के कारक बैक्टीरिया की पहचान करने की पुष्टि की थी, जिसके फलस्वरूप टीबी के निदान और इलाज में दुनिया भर के वैज्ञानिकों को बड़ी मदद मिली। राबर्ट कोच की इस महत्त्वपूर्ण खोज के पूरे सौ वर्ष बाद ‘इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट ट्यूबरकुलोसिस एंड लंग डिजीज’ द्वारा 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस के रूप में मनाने की सिफारिश की गई।

इस बार की विषय-वस्तु ‘हां, हम टीबी को समाप्त कर सकते हैं’ है।

तबसे हर साल विश्व टीबी दिवस एक विशेष विषय-वस्तु के साथ मनाया जाता है। इस बार की विषय-वस्तु ‘हां, हम टीबी को समाप्त कर सकते हैं’ है। 2022 की विषय-वस्तु थी ‘टीबी को खत्म करने के लिए निवेश करें, जीवन बचाएं’ और 2021 की विषय-वस्तु ‘घड़ी चल रही है’ और 2020 की विषय-वस्तु थी ‘यह टीबी खत्म करने का समय है’।
वैश्विक टीबी रिपोर्ट 2020 के आंकड़ों पर नजर डालें तो विश्व भर में 2020 में टीबी से बीमार होने वाले लोगों की संख्या करीब एक करोड़ थी और उस वर्ष इससे करीब पंद्रह लाख लोगों की मौत हो गई थी। भारत टीबी से सर्वाधिक प्रभावित एशियाई देश है। इस रिपोर्ट के अनुसार 2020 में भारत में टीबी के कुल 26.4 लाख मरीज थे और वर्ष 2019 में टीबी विकसित करने वाले देशों में भारत की 26 फीसद हिस्सेदारी थी।

टीबी का खात्मा करने की रणनीति के तहत डब्लूएचओ 2035 तक टीबी से होने वाली मौतों को पंचानबे फीसद तक और टीबी के नए मामलों को नब्बे फीसद तक कम करने पर काम कर रहा है। इस रणनीति के तहत टीबी रोगियों के लिए विशेष देखभाल केंद्रों की स्थापना, सभी देशों द्वारा टीबी को लेकर सार्थक कदम उठाने और टीबी को खत्म करने वाली प्रणालियों पर कार्य करने की अनिवार्यता तथा टीबी को लेकर गहन अनुसंधान और नवाचार को शामिल किए जाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है।

हालांकि वर्षों से इस बीमरी से मुक्ति के प्रयास हो रहे हैं और भारत अब तेजी से टीबी उन्मूलन की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इसी क्रम में भारत सरकार द्वारा एक विशेष कार्यक्रम ‘प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान’ की शुरुआत की जा चुकी है। इसके तहत भारत का संकल्प 2025 तक टीबी मुक्त होना है।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 8 सितंबर 2022 को इस अभियान की शुरुआत करते हुए लोगों से सामूहिक रूप से युद्ध स्तर पर काम करने का आग्रह किया था। राष्ट्रपति का कहना था कि भारत में दुनिया की आबादी का बीस प्रतिशत से कुछ कम है, लेकिन दुनिया के कुल टीबी रोगियों का यहां पच्चीस फीसद से भी ज्यादा है, जो चिंता का विषय है। उनका कहना था कि टीबी से प्रभावित अधिकांश लोग समाज के गरीब तबके से ही आते हैं।

समुचित इलाज के बावजूद टीबी के महामारी बनने का सबसे बड़ा कारण यही है कि लोगों में अब भी इस बीमारी के प्रति जानकारी का अभाव है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक टीबी किसी को भी हो सकती है, लोगों को इसके लक्षणों, बचाव के उपायों तथा इलाज के बारे में पूरी जानकारी होना बेहद जरूरी है।

तीन सप्ताह से ज्यादा खांसी रहना, खांसी के साथ बलगम आना, कभी-कभार खांसी में खून आना, शाम या रात के समय बुखार आना, भूख कम हो जाना, वजन निरंतर कम होते जाना, सांस लेने में परेशानी या सांस लेते समय सीने में दर्द होना आदि टीबी के प्रमुख लक्षण हैं। इससे बचाव के उपाय भी कठिन नहीं हैं। अगर टीबी हो जाए तो घबराने के बजाय इसका इलाज कराएं और आराम मिलने पर भी इलाज के बीच में दवाई हरगिज बंद न करें।

अगर मरीज में टीबी के लक्षणों की पहचान सही समय पर हो जाती है, तो पूरा इलाज कराकर जल्द ही इस बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है। देशभर के सरकारी अस्पतालों में टीबी की जांच और इलाज पूरी तरह मुफ्त है। ऐसे मरीज ‘डाट्स सेंटर’ या सरकारी अस्पतालों में अपना निशुल्क इलाज करा सकते हैं। पूरी तरह ठीक होने के लिए दवा की पूरी खुराक लेनी चाहिए अन्यथा यह बीमारी दुबारा हो सकती है। मरीज की स्थिति के अनुसार दवा नौ से अठारह माह तक लेनी पड़ सकती है।

बहरहाल, सरकार का लक्ष्य भारत को 2025 तक टीबी मुक्त बनाना है और यह दावा भी किया जा रहा है कि देश में टीबी से मौतों के आंकड़े कम होते जा रहे हैं। देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य बनाकर कार्य करना निस्संदेह बड़ी पहल है, लेकिन केवल दो वर्षों की शेष अवधि में इस कठिन लक्ष्य तक पहुंचना आसान नहीं लगता।

इसके लिए बेहद जरूरी है कि पोलियो उन्मूलन की तरह टीबी उन्मूलन की दिशा में भी पूरी तैयारी के साथ कड़ी मेहनत की जाए ताकि इस अभियान को पलीता न लगे। दरअसल, आमतौर पर ऐसी शिकायतें आती रही हैं कि टीबी के लिए आवश्यक अस्पतालों और कर्मियों का उपयोग दूसरे कार्यों में होता रहा है।

इसलिए 2025 तक टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए बेहद जरूरी है कि सरकारी मशीनरी को बेहद चुस्त-दुरुस्त बनाते हुए यह भी सुनिश्चित किया जाए कि टीबी से मुक्ति पाने के लिए निर्धारित संसाधनों का बेहतर उपयोग हो और टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत और सक्रिय बनाया जाए।

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First published on: 23-03-2023 at 06:00 IST
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