मैगसेसे विजेता विल्सन ने कहा: PM लाल किले से बताएं- सिर पर मैला ढोने की समस्या से कब मिलेगा छुटकारा
सरकार को गंभीरता से कदम उठाना होगा। पर सच्चाई यही है कि सरकार की ओर से अब तक गंभीरता नहीं दिखी। सच कहूं तो राजनीतिक इच्छाशक्ति की बहुत कमी है।

सिर पर मैला ढोने वालों को इस दलदल से बाहर निकालने के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता और रेमन मैगसेसे पुरस्कार विजेता बेजवाडा विल्सन ने रविवार को कहा कि इस ‘जाति आधारित समस्या’ को दूर करने में सरकार के स्तर पर राजनीतिक इच्छाशक्ति की बहुत कमी है तथा उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से इस काम में लगे लोगों को इससे छुुटकारा दिलाने और उनका पुनर्वास करने की समयसीमा का एलान करना चाहिए।
‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के अगुवा विल्सन ने कहा कि अगर सरकार के स्तर पर इस समस्या को दूर करने के मामले में गंभीरता नहीं दिखाई गई तो आगे वह सभी सफाई कर्मचारियों और सामाजिक संगठनों के लोगों को लेकर अपनी मुहिम को बड़े आंदोलन की शक्ल देने का प्रयास करेंगे।
उन्होंने ‘भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कहा, ‘‘सिर पर मैला ढोना और गटर के अंदर घुसकर सफाई करना जाति आधारित समस्या है। इस काम में लगे लोगों को इससे मुक्त कराने और उनके पुनर्वास के लिए सामाजिक स्तर पर पहल होने के साथ ही सरकार को गंभीरता से कदम उठाना होगा। पर सच्चाई यही है कि सरकार की ओर से अब तक गंभीरता नहीं दिखी। सच कहूं तो राजनीतिक इच्छाशक्ति की बहुत कमी है।’’
विल्सन ने कहा, ‘‘मेरी मांग है कि प्रधानमंत्री 15 अगस्त को अपने भाषण में सफाई कर्मचारियों की समस्या का भी उल्लेख करें। वह सिर पर मैला ढोने की समस्या को दूर करने के लिए निश्चित समयसीमा का एलान करें।’’
केंद्र सरकार के ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की आलोचना करते हुए विल्सन ने कहा, ‘‘यह :स्वच्छ भारत मिशन: सिर्फ शौचालय बनाने की योजना है। इससे मानव मात्र पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है। सिर्फ शौचालय बनाने से काम नहीं चलेगा। लोगों की गंदगी साफ करने के काम में लगे लोगों को इस दलदल से बाहर निकालना ज्यादा जरूरी है।’’ कुछ साल पहले आए आंकड़े के अनुसार सिर पर मैला ढोने के काम में छह लाख से अधिक लोग लगे हुए हैं। विल्सन का कहना है कि अभी भी सामूहिक स्तर पर कोई सर्वेक्षण नहीं हुआ है जिससे वास्तविक संख्या के बारे में पता चल सके।
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