किन वजहों से पहलू खान मामले में बरी हुए आरोपी, परिवार वालों ने कहा- जांच में बरती गई थी कोताही
Pehlu Khan lynching case: पहलू खान की मौत के दो दिन बाद बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि Bovine Animal Act के तहत खान के दो बेटों के खिलाफ दायर आरोपों ने अदालत में उनके तर्क को मदद की कि खान भी एक पशु तस्कर था।

How Pehlu Khan lynching case fell: पेहलू खान के बेटे और परिवार के वकील ने जांच में असफलता का आरोप लगाया। ये जांच राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पिछली भाजपा सरकार के तहत की गई थी। 1 अप्रैल, 2017 को पेहलू खान और उनके बेटे पर हमला करने के सभी छह आरोपियों को अदालत ने बुधवार को बरी कर दिया है। इस फैसले को लेकर बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि Bovine Animal Act के तहत खान के दो बेटों के खिलाफ दायर आरोपों ने अदालत में उनके तर्क को मदद की कि खान भी एक पशु तस्कर था।
बरी किए गए छह आरोपियों के वकील हुकुम चंद शर्मा ने बताया कि इस साल मई में खान के बेटों के खिलाफ अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार के सत्ता संभालने के बाद – राजस्थान के धारा 5, 8 और 9 Bovine Animal Act 1995 के तहत चार्जशीट दाखिल की गई थी। शर्मा ने कहा “मई में आरोप पत्र दायर किए जाने के बाद, मैंने अदालत को बताया कि खान के बेटों पर पुलिस द्वारा गौ तस्करी के आरोप लगाए गए हैं। अगर खान की मृत्यु नहीं हुई होती, तो उन्हें भी आरोपित किया जाता।” मैंने अदालत को बताया कि इससे साबित होता है कि खान डेयरी किसान नहीं थे बल्कि पशु तस्कर थे।”
शर्मा के अनुसार, जहां खान को 1 अप्रैल, 2017 को हमले के बाद भर्ती कराया गया था, वहां अस्पताल के डॉक्टरों के बयान के बीच विरोधाभास, और उनकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने भी अदालत में डिफेन्स टीम के तर्कों की मदद की। शर्मा ने आगे कहा “अस्पताल के डॉक्टरों ने कहा कि उन्हें (खान) एक पुरानी दिल की बीमारी थी और दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि उनकी पसलियों को तोड़ दिया था और उसकी चोटों के कारण मौत हो गई। इस विरोधाभास ने हमारे तर्क को मजबूत करने में मदद की।”
लेकिन खान के बेटे इरशाद ने कहा कि मामले को जांच के स्तर पर ही कमजोर कर दिया गया था। यह आरोप लगाते हुए कि जांच निष्पक्ष तरीके से नहीं की गई, इरशाद ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि वे निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील करेंगे। राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया, जो राज्य के गृह मंत्री थे, जब हमले की रिपोर्ट की गई थी, उन्होंने कहा: “आरोप है कि जांच न्यूट्रली नहीं की गई थी, बिल्कुल गलत हैं। क्या वे (आरोपी) जेल में इतना समय बिताते अगर जांच न्यूट्रली नहीं की जाती? पुलिस ने निष्पक्ष जांच की और चार्जशीट पेश की। अदालत के आदेश का सभी को सम्मान करना होगा।”
हालांकि, वकील कासिम खान, जिन्होंने खान के परिवार को कानूनी सहायता प्रदान की है ने जांच पर उंगलियां उठाईं हैं। उन्होंने कहा “मामले के जांच अधिकारी को तीन बार बदल दिया गया था – पहले बहरोड़ पुलिस स्टेशन के एसएचओ द्वारा जांच की गई थी, फिर बेहरोर के सर्कल अधिकारी ने पदभार संभाला और अंत में CID-CB (CID क्राइम ब्रांच) ने इस मामले की जांच शुरू की। हत्या के मामले में जांच अधिकारी को इतनी बार बदलने की क्या जरूरत थी?” उन्होंने आरोप लगाया कि जांच “राजनीतिक हितों के कारण” इस तरह से की गई थी, और यह सुनिश्चित किया कि मामले में दायर दो आरोप पत्रों में “विरोधाभास” हो।