ओबीसी क्रीमीलेयर की परिभाषा बदलने की तैयारी? 26 साल बाद मोदी सरकार ने बनाई कमेटी
सामाजिक न्याय मंत्रालय ने 8 मार्च को एक कमिटी का गठन किया है जिसका नेतृत्व भारत सरकार के पूर्व सचिव बी.पी.शर्मा करेंगे। कमिटी को 15 दिनों में अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है।

review OBC creamy layer: 26 सालों बाद ओबीसी ‘क्रीमी लेयर’ से संबंधित नियमों की समीक्षा होने जा रही है। 1993 में ओबीसी के लिए तय नियमों की अब तक समीक्षा नहीं हुई थी। सरकार ने एक्सपर्ट की एक कमिटी का गठन किया है जो उन नियमों पर गौर करेगी जिसके आधार पर ‘क्रीमी लेयर’ तय की जाती है। क्रीमी लेयर” ओबीसी का वह वर्ग है जो आर्थिक रूप से विकसित है। यह वर्ग नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण के लिए अयोग्य है। सामाजिक न्याय मंत्रालय ने 8 मार्च को एक कमिटी का गठन किया है जिसका नेतृत्व भारत सरकार के पूर्व सचिव बी.पी.शर्मा करेंगे। कमिटी को 15 दिनों में अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है।
यह कमिटी प्रसाद कमिटी द्वारा तय नियमों की समीक्षा करेगी। इसके बाद कमिटी क्रीमी लेयर के कॉन्सेप्ट को फिर से परिभाषित करने, सरल बनाने और उसमें सुधार के लिए अपना सुझाव देगी। कमिटी इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्थाओं को ध्यान में रखते हुए नियमों की समीक्षा करेगी। बता दें मंडल आयोग पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद क्रीमी लेयर को आरक्षण के लाभ से बाहर रखने के लिए नियम तय किए गए थे।
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग संपन्नता के अलग-अलग पैमानों का इस्तेमाल करता है जिसने विवाद को जन्म दिया। इसीलिए नियमों की समीक्षा की जरूरत है। विभाग क्रीमी लेयर निर्धारित करने के लिए पारिवारिक आय की जांच करता है लेकिन दो अलग-अलग पैमानों में। उनलोगों के लिए अलग जिनके माता या पिता केंद्र और राज्य सरकारों में सेवारत हैं और पीएसयू में कार्यरत लोगों के लिए अलग पैमाने का इस्तेमाल किया जाता है। सबसे बड़ी प्रॉब्लम ये है कि पीएसयू में पदों को ग्रुप ए, बी, सी और डी में बांटा नहीं गया है वहीं सरकारी नौकरियों में अलग-अलग ग्रुपों का प्रावधान है। ऐसे में कंफ्यूजन पैदा होता है। सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम की कुछ लोग आलोचना भी कर रहे हैं वहीं कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं।
विरोध कर रहे लोगों ने पूछा है कि केंद्र ने “क्रीमी लेयर” के मुद्दे पर एक विशेषज्ञ समिति का गठन क्यों किया है। जब पहले ही व्यापक शक्तियों और संवैधानिक दर्जा के साथ पिछड़ा वर्ग के लिए एक राष्ट्रीय आयोग बना हुआ है। बीजेपी सदस्यों पर आधारित एनसीबीसी (NCBC) के पास ओबीसी से जुड़े प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए उपाय सुझाने की शक्ति मौजूद है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसे में एक अलग कमिटी के गठन का कोई औचित्य नहीं है।