पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए. संगमा का शुक्रवार (4 मार्च) को नई दिल्ली में निधन हो गया। वह 68 साल के थे। संगमा सालों तक कांग्रेस में रहे। कांग्रेस में पूर्वोत्तर का चेहरा बने रहे। 11वीं लोकसभा में अध्यक्ष बनने से पहले कांग्रेस की कई सरकारों में कई विभागों के मंत्री रहे। बाद में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में चले गए। उन्होंने सोनिया के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ कर शरद पवार का दामन (एनसीपी में) थाम लिया था। दो साल तक मेघालय के मुख्यमंत्री रहे संगमा 9 बार लोकसभा के लिए चुने गए थे। अभी तूरा सीट से लोकसभा सांसद थे। उनकी बेटी अगाथा संगमा भी सांसद हैं। वह सबसे कम उम्र की मंत्री भी बनीं।
संगमा के निधन पर तमाम पार्टियों के नेताओं ने शोक जताया है। लोकसभा में भी उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। इसके बाद लोकसभा की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई। लोकसभा में उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि हंसते-हंसते कार्यवाही कैसे चलाई जाती है, यह मैंने उन्हीं से सीखा।
पीए संगमा ने प्रणव मुखर्जी के खिलाफ राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ा था। वह संघर्ष से शिखर तक पहुंचने वालों में थे। केवल 11 साल की उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया था। परिवार की हालत खराब हो गई थी। पूर्णो संगमा को स्कूल छोड़ना पड़ा था। खाने के लाले थे। दूसरों के जानवर चरा कर खाने का इंतजाम किया करते थे। फिर एक पादरी की कृपा से पढ़ाई शुरू हो सकी और जीवन नई दिशा में शुरू हुआ। पादरी को उस वक्त इसका एहसास भी नहीं था कि जिस बच्चे की वे मदद कर रहे हैं, एक दिन वह भारत के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ेगा।
सात भाई-बहनों में से एक संगमा का जन्म बांग्लादेश सीमा से लगते चपाहाती गांव में 1 सितंबर 1947 में हुआ था। गारो हिल्स में चर्च और स्कूल चलाने वाले पादरी जियोवन्नी बैटिस्टा बुसोलिन ने ये नहीं सोचा होगा, जो संगमा बने। संगमा ये बताते हुए कभी हिचकिचाहट महसूस नहीं करते थे कि वे बिना खाने के कुछ दिन कैसे रहे थे।
एक बार संगमा दोबारा से स्कूल पहुंचे तो उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा। उनके गांव से 340 किलोमीटर दूर शिलोंग के सेंट एंथनी कॉलेज से उन्होंने बीए की डिग्री हासिल की। उसके बाद वे असम के डिब्रुगढ़ में डॉन बॉस्को स्कूल में पढ़ाने लगे और उसी दौरान उन्होंने डिब्रुगढ़ यूनिवर्सिटी से इंटरनेशनल पॉलिटिक्स से एमए की पढ़ाई पूरी की। रात में वे लॉ कॉलेज भी जाते थे। कुछ दिन वकील और पत्रकार रहने के बाद वे राजनीति से जुड़ गए। उन्हें साल 1973 में यूथ कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया। चार साल बाद वे तूरा लोकसभा सीट से सांसद बन गए। इस सीट से वे नौ बार लोकसभा सांसद रहे थे। 1980 में उन्हें इंदिरा गांधी ने उद्योग मंत्रालय में जूनियर मंत्री बनाया। संगमा 12 साल तक केंद्रीय राज्य मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने कॉमर्स, सप्लाई, होम और लेबर सहित कई मंत्रालयों की कमान संभाली। उसके बाद उन्हें 1995-96 में नरसिंहा राव सरकार द्वारा केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया।
