यह पहला विदेशी ठेका है, जिसे तालिबान की सत्ता ने जारी किया है। यह सौदा 25 साल के लिए हुआ है। इस ठेके के जरिए इस इलाके में चीन की आर्थिक गतिविधियां बढ़ने की संभावना है। इस सौदे के रणनीतिक मायने लगाए जा रहे हैं क्योंकि अभी तक दुनिया की किसी सरकार ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है।
तालिबान प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद के मुताबिक, तेल खनन के सौदे के तहत शिनजियांग सेंट्रल एशिया पेट्रोल और गैस कंपनी (सीएपीईआइसी) अमू दरिया बेसिन में ड्रिलिंग करेगी।अफगानिस्तान में प्राकृतिक संसाधनों का बड़ा भंडार है। वर्षों तक संघर्ष चलते रहने के कारण अफगानिस्तान की इस संपदा का इस्तेमाल नहीं हो सका है।
जानकारों का मानना है कि ताजा समझौते के बाद दोनों देशों के बीच रिश्तों का नया अध्याय शुरू हो सकता है। चीन ने भी इसे एक अहम समझौता बताया है। अफगानिस्तान में चीन के राजदूत वांग यू ने काबुल में कहा, अमू दरिया तेल खनन सौदा चीन और अफगानिस्तान के लिए एक अहम परियोजना है। देश के पूर्वी भाग में एक तांबे की खान के संचालन को लेकर भी चीन की सरकारी कंपनी की तालिबान सरकार से बातचीत चल रही है।
अफगानिस्तान में प्राकृतिक गैस, तांबा और रेअर अर्थ मैटीरियल समेत विशाल प्राकृतिक संसाधन हैं जिनकी अनुमानित कीमत एक ट्रिलियन डालर है। अफगानिस्तान में दशकों तक चले युद्ध के कारण इन प्राकृतिक संसाधन के स्रोतों का इस्तेमाल नहीं हो सका। हालांकि, दुनिया के दूसरे देशों की तरह चीन ने अभी तक अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है लेकिन इस मुल्क में उसके बहुत अहम हित जुड़े हुए हैं।
वजह ये भी है कि अफगानिस्तान चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) क्षेत्र के केंद्र में है। साल 2013 में शी जिनपिंग ने बीआरआइ को लांच किया था। यह परियोजना उभरते हुए देशों में बंदरगाह, सड़कें, ब्रिज जैसी आधारभूत संरचनाएं बनाने के लिए वित्तीय सहायता मुहैया कराने का काम करती है। अफगानिस्तान के साथ भारत समेत दूसरे पड़ोसी देशों के भी हित जुड़े रहे हैं।
अफगानिस्तान की पूर्व सरकार के दौरान भारत ने वहां संसद भवन समेत कई निर्माण कराए थे। दिसंबर में तालिबान ने कहा था कि वो चाहता है कि भारत अफगानिस्तान में निवेश करे और नई शहरी ढांचागत परियोजनाओं को शुरू करे। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद भारत ने काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया था और सभी अधिकारियों को वापस बुला लिया था। दूसरी ओर, चीन, पाकिस्तान और रूस के बाद तीसरा देश है जिसने तालिबान के कब्जे के बाद काबुल में अपना दूतावास खोला।