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सकते में कब्जेदार

केंद्र सरकार ने उन लोगों की अचल संपत्ति को शत्रु संपत्ति माना है, जो विभाजन के समय यहां से पाकिस्तान चले गए।

सकते में कब्जेदार

सुभाष चंद्र शर्मा

केंद्र सरकार को अब शत्रु संपत्ति की याद आई है। जबसे लोगों को पता चला है कि जिस जमीन पर वे दशकों से काबिज हैं, खेती करते या मकान आदि बना कर रह रहे हैं, उसे केंद्र सरकार ने शत्रु संपत्ति घोषित कर, उनका मालिकाना हक खत्म करने की पूरी तैयारी कर ली है, लोगों की नींद हराम हो गई है। देशभर में करीब साढ़े बारह हजार एकड़ ऐसी जमीन है, जिसे केंद्र सरकार ने शत्रु संपत्ति घोषित किया है। इसमें से आधी से ज्यादा उत्तर प्रदेश में है।

केंद्र सरकार ने उन लोगों की अचल संपत्ति को शत्रु संपत्ति माना है, जो विभाजन के समय यहां से पाकिस्तान चले गए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले की मोदीनगर तहसील के गांव सीकरी खुर्द की करीब 597 बीघा जमीन पर जिला प्रशासन शत्रु संपत्ति का दावा करा रहा है। इस जमीन पर अब तक लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी खेती करते आ रहे हैं। इस तरह की जमीन पर मोदीनगर में कई कालोनियां और मुहल्ले बस गए हैं, जहां अब हजारों की संख्या में मकान हैं। यहां मकान बनाने वालों ने बाकायदा जमीन खरीद की रजिस्ट्री कराई है। गांव में भी इस जमीन पर बहुत से लोगों ने 1958 से भी पहले मकान बना लिए।

पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह, प्रदेश की तत्कालीन गोविंद वल्लभ पंत की सरकार में मंत्री थे। तब उन्होंने खेतीहर मजदूर, दलितों, पिछड़ों, जो कि उस समय खेतों में अपना खून-पसीना बहा रहे थे, उन्हें तत्कालीन जमीदारों के शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए उत्तर प्रदेश में 1 जुलाई, 1952 को जमींदारी उन्मूलन कानून लागू किया। उससे किसानों को नियमानुसार लगान का दस गुना रकम राज्य सरकार में जमा कराने पर उन्हें मालिकाना हक मिल गया था। उसके बाद से वह जमीन तहसील रिकार्ड में उनके नाम पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी दर्ज होती चली आ रही है।

इतना ही नहीं, 1968 से लेकर 1971 के बीच गांवों में चकबंदी हुई और किसानों की जमीन को चकबंदी रिकार्ड में भी उनके नाम पर दर्ज किया गया। गांव की सीमा पर 1970 में यूपी सरकार ने बिजली घर, अधिकारियों के दफ्तर और कर्मचारियों के आवास आदि के लिए करीब सौ बीघा जमीन अधिग्रहीत की थी, जो शत्रु संपत्ति थी और उस जमीन का बाकायदा किसानों को मुआवजा दिया गया। जब जमीन पर किसानों का मालिकाना हक नहीं था, तो फिर मुआवजा किस बात का दिया गया।

अब आकर किसानों की करीब 597 बीघा जमीन, जिसे शत्रु संपत्ति कहां गया है, तहसील के रिकार्ड में मालिकाना हक की जगह केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के आदेश 13 जनवरी, 2022, के बाद जिलाधिकारी के आदेश 22 जनवरी, एडीएम प्रशासन 12 अप्रैल और उसी तारीख को एसडीएम और तहसीलदार के आदेश से शत्रु संपत्ति दर्ज कर दिया गया। जिन खसरों में ये आदेश अभी दर्ज नहीं हुए हैं, उनमें दर्ज करने का काम तेजी चल रहा है।इधर जबसे शत्रु संपत्ति को लेकर तहसील की कार्यवाही शुरू हुई है, तबसे उस भूमि पर काबिज, चाहे वे उस पर खेती कर रहे हैं या मकान बना कर रह रहे हैं, उनकी नींद उड़ गई है।

इसको लेकर पीड़ित लोग डीएम और अन्य अधिकारियों से भी मिले, लेकिन इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के आदेश बता कर सबने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। शत्रु संपत्ति को लेकर अब लोगों के सामने हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं रह गया है। आम लोगों का यही कहना है कि देश के आजाद होने के बाद से अब तक कई राजनीतिक पार्टियों की सरकारें केंद्र में आर्इं, कभी किसी ने इस मामले को नहीं उठाया। लोगों का कहना है कि सरकार की नीयत इस जमीन से पैसा वसूल कर अपना खजाना भरने की है। अनुमान है कि शत्रु संपत्ति से एक लाख करोड़ रुपए मिल सकते हैं।

केंद्र सरकार ने व्यवस्था दी है कि यूपी के जिस जिले में शत्रु संपत्ति है, वहां के जिलाधिकारी के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया जाएगा। जिस संपत्ति की कीमत एक करोड़ रुपए से अधिक है, उसकी सार्वजनिक नीलामी होगी और जिसकी कीमत इससे कम है उसे डीएम रेंट (लीज) आदि पर दे सकते हैं।

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First published on: 30-05-2022 at 01:29 IST
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