National Register Of Citizen (NRC) को लेकर केंद्र सरकार ने साफ किया है कि एनआरसी अभी देश में लागू नहीं किया जाएगा। लेकिन कुछ राज्यों में अल्पसंख्यकों के बीच एनआरसी को लेकर अभी भी भय नजर आ रहा है। शायद यहीं वजह है कि अचानक इन राज्यों के सरकारी कार्यालयों में जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए लोगों की भीड़ बढ़ गई है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पिछले साल यानी वर्ष 2019 में 6,193 जन्म प्रमाण पत्र बनवाए गए। यह आंकड़ें पिछले तीन साल के मुकाबले सबसे ज्यादा हैं। लखनऊ म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में काम करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया है कि अचानक यहां जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए भीड़ बढ़ गई है। खासकर मुस्लिम बुजुर्गों की संख्या काउंटरों पर यहां ज्यादा देखी जा रही है। लखनऊ के अलावा प्रयागराज, वाराणसी, मेरठ, हापुड़ और बुलंदशहर जैसे अन्य जिलों में भी जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए लोगों के बीच होड़ मची हुई है।

कुछ इसी तरह की भीड़ बिहार में भी देखी जा रही है। साल 2019 में जनवरी से लेकर नवंबर के महीने तक कुल 4,000 लोगों ने यहां जन्म प्रमाण पत्र लेने के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराया। वहीं दिसंबर में यह आकंड़ा बढ़कर 6,000 हो गया। इनमें से 25 प्रतिशत लोग 40-50 वर्ष के थे और मुख्य रूप से अल्संख्यक समुदाय से ताल्लुक रखते थे।

पश्चिम बंगाल में जन्म प्रमाण पत्र से जुड़े कागजात हासिल करने के लिए सरकारी कार्यालयों में पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में भारी भीड़ जुटी। हालांकि राज्य की सीएम ममता बनर्जी ने साफ किया है कि वो पश्चिम बंगाल में एनपीआर औऱ एनआऱसी को लागू नहीं करेंगी। हालांकि इसके बावजूद सरकारी काउंटरों पर दस्तावेज पाने वाले लोगों की भीड़ कम नहीं हुई है।

महाराष्ट्र में अल्पसंख्यक बाहुल्य वाले मालेगांव और औरंगाबाद क्षेत्रों के लोग जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं। पीटीआई से बातचीत करते हुए महाराष्ट्र सरकार के अधिकारी ने बताया है कि यहां लोगों की भीड़ को देखते हुए अतिरिक्त कार्यालय खोले गए हैं ताकि उन्हें कागजात मुहैया कराया जा सके।