भारत-चीन के बीच नौंवे दौर की वार्ता भी विफल, पर नई दिल्ली की दो टूक- पीछे तो हर हाल में हटना होगा
पूर्वी लद्दाख में लगभग नौ महीने से चले आ रहे सीमा गतिरोध को हल करने के लिए भारत और चीन के वरिष्ठ सैन्य कमांडरों ने रविवार को नौवें दौर की वार्ता की जो कि विफल रही है।

पूर्वी लद्दाख में लगभग नौ महीने से चले आ रहे सीमा गतिरोध को हल करने के लिए भारत और चीन के वरिष्ठ सैन्य कमांडरों ने रविवार को नौवें दौर की वार्ता की जो कि विफल रही है। चुशुल-मोल्दो पॉइंट पर रविवार सुबह 10 बजे शुरू हुई बैठक रविवार शाम तक जारी रही।
इससे पहले 6 नवंबर को दोनों पक्षों के बीच वार्ता हुई थी। फिलहाल सीमा पर तोप और टैंक के साथ लगभग 50,000 सैनिक तैनात हैं। दोनों देश आपस में लगातार संपर्क बनाए हुए हैं जिससे कि सीमा पर किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके।
पिछले कुछ महीनों में, भारत ने अलग-अलग घटनाओं में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार आए दो चीनी सैनिकों को वापस चीन को लौटा दिया। रविवार को शुरू हुई चर्चा में भारत का नेतृत्व लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन ने किया। चीनी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व दक्षिण शिनजियांग सैन्य क्षेत्र के कमांडर मेजर जनरल लियू लिन ने किया।
गतिरोध पिछले साल मई की शुरुआत में शुरू हुआ था, जब चीनी भारत की सीमा में 8 किलोमीटर भीतर आए थे। हालांकि जून की शुरुआत में चीन ने अपने सैनिकों को पीछे लेना शुरू किया था लेकिन सीमा पर कई बिंदुओं पर इसे पूरा नहीं किया था।
गतिरोध पिछले साल 15 जून को बढ़ गया था जब भारतीय और चीनी सेनाएं गश्त के दौरान टकरा गईं थीं। जिसके चलते दोनों पक्षों के सैनिकों की जान गई थी। तब से दोनों पक्षों ने इस क्षेत्र में अपनी सैन्य ताकत बढ़ा दी है।
अगस्त के आखिर में भारतीय सैनिकों ने चुशुल में पैंगोंग त्सो के दक्षिणी किनारे पर रणनीतिक रूप से अहम ऊंचे स्थानों पर कब्जा कर चीन को हैरान कर दिया था। भारत ने पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर अपने सैनिकों को फिर से तैनात कर दिया। सीमा पर दोनों ओर की सेनाएं एक-दूसरे से कुछ सौ मीटर की दूरी पर तैनात हैं।
बाद की सैन्य चर्चाओं के दौरान, चीन ने मांग की कि चुशुल में भारतीय सैनिक वापस जाएँ। भारत ने अप्रैल 2020 की स्थिति की मांग करते हुए जोर देकर कहा कि कोई भी संकल्प पूरे क्षेत्र के लिए होना चाहिए। हाल ही में संकेत मिले हैं कि दोनों पक्ष अभी सहमत नहीं हुए हैं कि कौन पहले कहां से वापस जाएगा।