9 साल के बच्चे के फेफड़े से निकाला गया एलईडी बल्ब, 10 मिनट में ही डॉक्टरों ने किया कमाल
डॉ. ए रघु कंठ ने बताया, “एलईडी बल्ब के साथ नीचे की ओर धातु का एक छोटा तार लगा था। यह मुख्य वायुमार्ग (ट्रेकिआ) को खराब कर सकता था। साथ ही इसकी वजह से रासायनिक प्रतिक्रियाओं के कारण या आंतरिक रक्तस्राव के कारण भी जटिलता आ सकती थी।"

राहुल वी पिशारोडी
हैदराबाद के एक डॉक्टर ने तेलंगाना के महबूबनगर निवासी नौ साल के एक बच्चे के फेफड़े से एलईडी बल्ब निकाला है। बच्चा इसे दोस्तों के साथ खेलते हुए निगल लिया था। जब उसे सांस लेने और खांसने में दिक्कत हुई तो उसने घर वालों को बताई। डॉक्टरों के पास ले जाने पर उसकी सीटी स्कैन करने पर बल्ब की जानकारी मिली। डॉक्टरों के मुताबिक यह बहुत ही खतरनाक स्थिति थी और देर करने पर उसके जान का खतरा था।
महबूबनगर का नौ साल का बच्चा प्रकाश रविवार को दोस्तों के साथ खेलते-खेलते अचानक एलईडी बल्ब निगल लिया। सांस लेने और खांसने में दिक्कत हुई तो उसने घर वालों को अपनी परेशानी बताई। सोमवार को घर वाले उसे डॉक्टर के पास ले गए तो उसकी तुरंत सीटी स्कैन कराई गई। सीटी स्कैन में उसके फेफड़े के अंदर वाली ट्यूब के निचले हिस्से में एक छोटा एलईडी बल्ब और तार दिखा। डॉक्टरों ने उसकी ब्रोंकोस्कोपी करके उसे दस मिनट में ही बिना किसी दिक्कत के बाहर निकाल दिया। बच्चा बिल्कुल स्वस्थ है। खास बात यह है कि बच्चे को उसी दिन अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए मेडिकओवर अस्पताल में इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजिस्ट वरिष्ठ सलाहकार डॉ. ए रघु कंठ ने कहा कि समय पर इसकी जानकारी मिल जाने से इसमें सफलता मिल सकी है। देर करने पर यह खतरनाक हो सकता था और जान भी जा सकती थी।
डॉ. ए रघु कंठ ने बताया, “आमतौर पर हम देखते हैं कि 4 या 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे खेल-खेल में कोई कड़ी चीज, बीज और खिलौने के छोटे-छोटे टुकड़े इत्यादि निगल जाते हैं। लेकिन इस मामले में यह अधिक खतरनाक था। इसमें एलईडी बल्ब के साथ नीचे की ओर धातु का एक छोटा तार लगा था। यह मुख्य वायुमार्ग (ट्रेकिआ) को खराब कर सकता था। साथ ही इसकी वजह से रासायनिक प्रतिक्रियाओं के कारण या आंतरिक रक्तस्राव के कारण भी जटिलता आ सकती थी। जब यह और गहराई से अंदर चली जाती तो उसकाे निकालना और अधिक मुश्किल हो जाती। तब उसको निकालने के लिए खुली सर्जरी की जरूरत पड़ती।” उन्होंने कहा कि बल्ब 12 घंटे से अधिक समय तक शरीर के अंदर था।
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