इस खिलाड़ी का नाम है नीलम संजीप खेस। नीलम ओड़ीशा के ही रहने वाले हैं और उन्होंने बहुत ही तंगहाली में हाकी खेलना शुरू किया था। उनके गांव में पांच साल पहले बिजली तक नहीं थी।
नीलम शुरुआत में शौकिया हाकी खेला करते थे। नीलम ने ऐसी जगह पर हाकी खेलना शुरू किया था जिस मैदान पर घास तक नहीं थी। गोल पोस्ट के नाम पर उस धूल भरे मैदान के दोनों ओर फटी हुई नेट लगी थी। हाकी स्टिक के नाम पर उनके पास बांस का डंडा होता था। स्कूल के बाद जैसे ही उन्हें खाली समय मिलता था तो वह अपने भाई के साथ हाकी खेलने में मगन हो जाते थे और उसके बाद अपने पिता के साथ खेत में काम करने चले जाते थे।
नीलम को धीरे-धीरे इस खेल में दिलचस्पी होने लगी। फिर उन्होंने हाकी को अपना शौक बना लिया। हालांकि, इस खेल में करियर बनाना उनके लिए बिल्कुल आसान नहीं रहा, क्योंकि उनका परिवार इतनी गरीबी में गुजर बसर कर रहा था कि उनके पास हाकी स्टिक खरीदने तक के पैसे नहीं थे। उनके माता पिता ने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए दूसरों से उधार लेकर हाकी स्टिक और अन्य जरूरत को पूरा किया।
नीलम का मानना है कि हाकी में अधिकतर लोग फारवर्ड के तौर पर खेलना पसंद करते हैं। इस भूमिका में गोल दागने के मौके अधिक होते हैं, लेकिन उन्होंने डिफेंडर की जगह चुनी। इसी के साथ उन्हें 2010 में सुंदरगढ़ के स्पोर्ट्स होस्टल में जगह मिल गई है। यहीं से संजीप ने अपने सपने की उड़ान को पंख दे दिया। उन्होंने भारतीय टीम में शामिल होने के लिए जीतोड़ मेहनत शुरू कर दी।
इस बीच, नीलम को भारत के स्टार खिलाड़ी वीरेंद्र लाकड़ा का साथ मिला। वीरेंद्र ने उन्हें मैदान पर टैकल, पोजिशनिंग करना और मैदान पर विरोधियों के दबाव के कैसे बाहर निकला जाता है, इन सभी बारीकियों को सिखाया। संजीप ओड़ीशा के सुंदरगढ़ जिले में कुआरमुंडा ब्लाक के अंतर्गत आने वाले काडोबहाल गांव में अपने परिवार के संग रहते हैं।
परिवार के सदस्य सब्जी की खेती करने के साथ दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। किसी तरह परिवार का खर्च पूरा हो पाता है। नीलम के घर में इतनी भी जगह नहीं है कि वे जीते गए मेडल, ट्राफी और प्रमाणपत्र को ठीक तरह से संजो कर रख सकें। उनके सभी पुरस्कार टेबल और जमीन पर बिखरे रहते हैं। उनके परिवार को पास केवल राशन कार्ड है।
नीलम संजीप खेस साल 2016 में एशिया कप में भारतीय अंडर-18 टीम का नेतृत्व भी कर चुके हैं। उनके पिता बिपिन खेस अपने बेटे के खेल से काफी खुश हैं कि उनका बेटा भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा है। वे कहते हैं कि बेटे ने यह मुकाम काफी संघर्ष के बाद हासिल किया है। उनका कहना है कि उनके पास फूस के घर में रहने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। उन्हें सरकार से शिकायत है कि सरकार ने उनकी मदद नहीं की, जिसकी वजह वह एक कच्चे मकान में रहने पर मजबूर हैं।