खासकर ग्रामीण इलाकों में शायद ही कोई घर ऐसा हो जहां गाय-भैंसें न हों। गायों के प्रति इसी नजदीकी और संवेदनशीलता का नतीजा है कि गायों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और उनकी देखभाल के लिए हमारे देश में कई तरह के कानून हैं। अलग-अलग राज्यों ने गायों की सुरक्षा के लिए कई कदम भी उठाएं है।
यहां तक की उत्तर प्रदेश में जानवरों को छुट्टा छोड़ने पर पशु क्रूरता अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करने का प्रावधान बनाया जा रहा है। वहां गायों के लिए 6,222 स्थायी आश्रय स्थल हैं, जहां करीब साढ़े आठ लाख गायों को रखा गया है। बावजूद इसके, अक्सर गोशालाओं में गायों-बछड़ों की मौत होती है, जिसके पीछे गोशालाओं की दुर्दशा और जानवरों को एक उत्पाद की तरह इस्तेमाल करना है। हमारे देश में समाज के साथ रहने वाले जानवरों के साथ बहुत ही मित्रतापूर्ण और सम्मानजक व्यवहार पुराने समय से चला आ रहा है।
मगर, आजादी के बाद जब व्यापार के लिए पशुओं का इस्तेमाल किया जाने लगा, तब पशुओं के प्रति क्रूरता के मामले बढ़ने लगे, जिससे सरकार ने पशुओं पर क्रूरता के खिलाफ कानून बनाया, जिसे पशु क्रूरता निवारण (पीसीए) अधिनियम, 1960 कहते हैं। इस कानून की धारा 11 में स्पष्ट किया गया है कि परिवहन के दौरान किसी भी जानवर को नुकसान पहुंचाना एक अपराध है। इस अधिनियम के तहत खचाखच भरे वाहनों में मवेशियों को बांधना गैर-कानूनी है।
पशु क्रूरता निवारण (पीसीए) अधिनियम जानवरों पर मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले क्रूर व्यवहार को रोकता है। इसका मतलब है कि जानवरों को भी स्वतंत्रता का अधिकार है। कानून उन्हें बंदी बनाना अवैध घोषित करता है। साथ ही, भारत के संविधान के अनुच्छेद 51 ए (जी) के अनुसार वन्य जीवन की रक्षा करना और सभी जीवित प्राणियों के लिए दया करना, हम सभी का मौलिक कर्तव्य है।
ऐसे में सवाल उठता है कि गायों पर ही सबसे ज्यादा संकट क्यों है? असल में, विगत दशकों में गोवंश की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन शहरों का विकास होने और जंगल और चरागाह की जगहें कम होने के कारण छुट्टा गायें यानी दूध न देने वाली गायों की संख्या इसमें ज्यादा बढ़ी है। छुट्टा गोवंश की स्थिति देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है।
हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में तो पशुओं को छोड़ने की परंपरा कम है, लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों में पशुओं को ज्Þयादा छोड़ा जाता है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में तो बाकायदा दशकों से गायों को छुट्टा छोड़ा जाता है और यह अन्ना प्रथा के नाम से लोकप्रिय है। हालांकि, यह अन्ना पशु वहां के किसानों के लिए गंभीर समस्या है। इस प्रथा की वजह से किसानों को कई तरह की समस्या का सामना करना पड़ता है।
‘फेडरेशन आफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन आर्गेनाइजेशन’ और टीपीपी की फेलोशिप रिसर्च की रिपोर्ट की मानें तो बुंदेलखंड में अन्ना पशुओं की मुख्य वजह चारे की समस्या है। सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड में जानवरों के लिए चारा मिलना आसान नहीं है। यहां पर चारा न होने की वजह से किसान अपनी गायों को छुट्टा छोड़ देते हैं। हर साल इसके चलते सैकड़ों गायें भूखी प्यासी दम तोड़ देती हैं। जून महीने में गर्मी के विकराल रूप धरने और सरकारी गोशालाओं में बदइंतजामी के चलते अचानक कई जगहों से गायों के मरने की खबरें आने लगती हैं।
दरअसल, प्रदेश सरकार ने गोशालाओं के लिए प्रति जानवर तीस रुपए प्रति दिन तय कर रखा है, यानी एक गाय को तीस रुपए का चारा एक दिन में मिलेगा। जमीनी हकीकत यह है कि गोशालाओं को छह-छह महीने तक बजट नहीं मिलता, जबकि उन्हें गायों को प्रतिदिन खिलाना पड़ता है। सरकारी पैसा पाने के लिए कमीशन देना पड़ता है। ऐसे में गायों की चिंता छोड़ वे पैसा बचाने पर ध्यान देते हैं, जिससे गोशालायें बदहाल हो जाती हैं और गायें मरने लगती हैं।