म्यांमा की अपदस्थ नेता आंग सान सू की पर चल रहे कई मुकदमों में से पहले में उन्हें देश के कोविड प्रतिबंधों के उल्लंघन पर दो साल की जेल की सजा सुनाई गई है। अगर वह अन्य सभी मामलों में भी दोषी पाई जाती हैं तो उन्हें सौ साल से अधिक की सजा मिल सकती है। फरवरी में देश की सत्ता सेना के नियंत्रण में आने के बाद से सू की नजरबंद है। हालांकि, वह अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इनकार करती हैं।
उन्हें कैद की सजा के फैसले की संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और यूके सरकार सहित कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने निंदा की है। उन सबने मुकदमे को ‘राजनीति से प्रेरित’ बताया है। सरकारी टेलीविजन के अनुसार, उन्हें मूल रूप से चार साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन देश के सैन्य प्रमुखों द्वारा उसे आधा कर दिया गया।
जबकि, 2015 में हालात ऐसे नहीं थे। दुनिया ने उनकी पार्टी की शानदार चुनावी जीत का जश्न मनाया और उन्होंने सरकार के सलाहकार की भूमिका निभाई। उन्हें 2008 में सैन्य जुंटा द्वारा देश के संविधान द्वारा राष्ट्रपति पद पर कब्जा करने से रोका गया था, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की पहली नागरिक सरकार में सत्ता के केंद्र के रूप में स्वीकार किया गया था।
इससे पहले वर्ष 1989 से 2010 की अधिकांश अवधि के दौरान घर में नजरबंद रहने के बाद, नेशनल लीग फार डेमोक्रेसी (एनएलडी) पार्टी का नेतृत्व करने वाली आंग सान सू की की चुनावी सफलता को व्यापक रूप से उनके महत्त्वपूर्ण क्षण और म्यांमार में लोकतंत्र के लिए एक प्रमुख अवसर के रूप में देखा गया। लेकिन उनका उद्भव जितनी तेजी से हुआ था, पराभव भी उतनी ही तेजी से हुआ।
आंशिक रूप से सरकार की जटिल प्रणाली के परिणामस्वरूप, जिसने सेना के लिए उच्च स्तर की राजनीतिक शक्ति को प्रभावी ढंग से संरक्षित किया, म्यांमार में परिवर्तन की गति धीमी रही। अधिकारियों को दीर्घकालिक अलगाववादी विद्रोहों का भी सामना करना पड़ रहा था और 2017 में, पश्चिमी रखाइन राज्य में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ एक सैन्य कार्रवाई में हजारों लोग बांग्लादेश भाग गए।
सैन्य सरकार ने 2008 के संविधान का इस्तेमाल तख्तापलट के लिए कानूनी आधार के रूप में किया। सरकार के इस फैसले की विश्व स्तर पर तो आलोचना हुई ही है, आंग सान सू की और उनकी पार्टी के अन्य सदस्यों के मुकदमों की अंतरराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर भारी आलोचना हुई है। अदालती कार्यवाही जनता के लिए बंद रही है, और उसके वकीलों को सार्वजनिक रूप से बोलने से प्रतिबंधित कर दिया गया है, इसलिए प्रक्रिया अत्यधिक अपारदर्शी बनी हुई है।
जानकारों के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एनएलडी नेतृत्व, साथ ही इस साल की शुरुआत में तख्तापलट के बाद से गिरफ्तार किए गए हजारों प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने में इस तरह की चुप्पी से सावधान रहना चाहिए। तख्तापलट के नेता अपने पदों को सुरक्षित और वैध बनाने के लिए पहले से मौजूद राजनीतिक और कानूनी संरचनाओं का उपयोग करते हैं और ठीक यही बात आंग सान सू की के मुकदमे से प्रदर्शित होती है। सभी मुकदमों की वैधता उन संस्थानों द्वारा लिखी जाती है जो उन्हें संचालित करते हैं। हालांकि, तख्तापलट के बाद की सरकारें अत्यधिक संवेदनशील होती हैं और इसलिए अपने कार्यों के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं से सतर्क रहती हैं।
क्यों घटा अंतरराष्ट्रीय समर्थन
नरसंहार के आरोपों के बीच, एनएलडी सरकार के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन कम होने लगा। यह आंग सान सू की की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा के लिए एक बड़ा झटका था और संकट पर उनकी चुप्पी के कारण 2001 में उन्हें दिए गए नोबेल शांति पुरस्कार को रद्द करने के लिए व्यापक आह्वान किया गया। अंतर्राष्ट्रीय निंदा तब और बढ़ गई जब वह दिसंबर 2019 में नरसंहार के दावों के खिलाफ म्यांमार का बचाव करने के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पेश हुई। नवंबर 2020 के चुनाव में उनकी पार्टी एक बार फिर सफल रही, लेकिन सेना ने एनएलडी पर व्यापक मतदाता धोखाधड़ी का आरोप लगाया। अवैधता के इन दावों ने इस साल एक फरवरी को हुए सैन्य अधिग्रहण की नींव रखी। तख्तापलट के बाद से सेना ने कानूनी ढांचे का उपयोग कर ताकत जुटाई।