मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले की जांच में लचर रवैये को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (27 नवंबर) को बिहार सरकार को कड़ी फटकार लगाई। जस्टिस मदन लोकुर, एस अब्दुल नजीर और दीपक गुप्ता की बेंच ने हैरानी जताते हुए पुलिसिया रवैये को ‘दुखद’ बताया। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि राज्य की पुलिस अपना काम ठीक से नहीं कर रही है। अदालत ने यह भी संभावता जताई कि मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंपी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पांच शेल्टर होम से जुड़े मामलों की एफआईआर में गंभीर अपराधों को जगह नहीं दी गई है। जो आरोप लगाए गए हैं, वह कम गंभीर प्रकृति के हैं।
जस्टिस गुप्ता ने कहा, “जब एक भरोसेमंद संस्था कह रही है कि यह यौन शोषण का मामला है, तो इसकी गंभीर जांच की आवश्यकता है।” बिहार सरकार की तरह से शामिल एडवोकेट गोपाल सिंह ने जब कहा कि वह निजी स्तर पर सुनिश्चित करेंगे कि चूक दूर की जाए तो जस्टिस गुप्ता ने कहा, “आप (बिहार सरकार) क्या कर रहे हैं? बच्चे के साथ दुराचार हुआ और आप कहते हैं कि कोई बात नहीं। आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? यह अमानवीय है। हमें बताया गया था कि मामले को बेहद गंभीरता से देखा जाएगा, क्या यही गंभीरता है? जितनी बार मैं इस फाइल को पढ़ता हूं, बेहद गुस्सा आता है। यह बेहद दुखद है।”
अदालत ने बिहार सरकार को एफआईआर दुरुस्त करने के लिए 24 घंटों का वक्त दिया है और सुनवाई की अगली तारीख 28 नवंबर तय की है। जब सिंह ने एक सप्ताह का समय मांगा तो जस्टिस लोकुर ने फौरन कहा, “आप क्या कह रहे हैं? एक बच्चे के साथ दुराचार हुआ है और आप कह रहे हैं कि मैं सोमवार को एफआईआर दर्ज करूंगा?”
मुजफ्फरपुर मामले में सीबीआई जांच का पक्ष लेते हुए जस्टिस लोकुर ने कहा, “ऐसा लगता है कि राज्य पुलिस इसमें नरमी बरत रही है…आपकी पुलिस लोगों को गिरफ्तार नहीं कर सकती, एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती।” अदालत ने सीबीआई की तरफ से शामिल सार्वजनिक अभियोक्ता के राघवाचार्युलु से मामले में निर्देश लेने को कहा। अदालत अब 28 नवंबर की सुनवाई में यह तय करेगी कि मामला सीबीआई को सौंपा जाए या नहीं।