GRATUITY मिलेगी वो भी महज 1 साल की सर्विस के बाद! Social Security Code में कई बदलाव कर सकती है सरकार
सरकार की तरफ से सोशल सिक्योरिटी कोड बिल को लेकर इससे जुड़े लोगों और संगठनों से बातचीत की गई है। उन लोगों की सलाह और उनकी मांगों के आधार पर बिल में उनको जगह दी गई है।

सरकार की तरफ से सामाजिक सुरक्षा संहिता (Social Security Code) में बदलाव किया जा सकता है। इसके अलावा सरकार कर्मचारियों के लिए ग्रेच्युटी पाने से जुड़े नियम में भी बदलाव कर सकती है। संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में सरकार की तरफ से सोशल सिक्योरिटी कोड से संबंधित बिल पेश किया जाना है।
बिल पेश होने से पहले इसमें कई महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल सकते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण बदलाव ग्रेच्युटी पाने संबंधी नियमों से जुड़ा हो सकता है। सरकार ग्रेच्युटी पाने की समय सीमा को पांच साल से घटाकर एक साल कर सकती है। मजदूर संगठन लंबे समय से इस आशय की मांग कर रहे हैं।
यदि यह नियम लागू होता है तो यदि किसी ने किसी कंपनी में एक साल से अधिक समय तक काम किया है वह ग्रेच्युटी पाने का हकदार हो जाएगा। मौजूदा समय में किसी कंपनी में पांच साल काम करने के बाद नौकरी छोड़ता है तो उस स्थिति में ही वह कर्मचारी ग्रेच्युटी पाने का हकदार होता है।
नवभारत टाइम्स ने एक सरकारी अधिकारी के हवाले से बताया कि सरकार की तरफ से सोशल सिक्योरिटी कोड बिल को लेकर इससे जुड़े लोगों और संगठनों से बातचीत की गई है। उन लोगों की सलाह और उनकी मांगों के आधार पर बिल में उनको जगह दी गई है। वहीं, भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने सामाजिक सुरक्षा संहिता के ताजा मसौदे को खारिज कर दिया है। श्रमिक संगठन ने सोमवार को कहा कि यह देश में कर्मचारियों के लिये पूरी तरह निराशाजनक है।
बीएमएस ने सोमवार को मंत्रालय को सौंपे गये अपने जवाब में कहा है, ‘‘सामाजिक सुरक्षा संहिता 2019 पर चौथा मसौदा कर्मचारियों के लिये पूरी तरह निराशाजनक है।’’ श्रमिक संगठन के बयान के अनुसार मसौदा में विभिन्न लाभों के लिये अलग-अलग सीमाओं के मौजूदा आठ सामाजिक सुरक्षा कानून के कमजोर पुराने प्रावधानों को ही इधर उधर कर के जोड़ा गया है। इसमें हर लाभ के लिए अलग अलग न्यूनतम सीमाएं लागू की गयी है।
यह मौजूदा रूप श्रम कानूनों को संहिताबद्ध करने के लक्ष्य के विपरीत है। यूनियन ने यह मांग की है कि ग्रेच्युटी के लिये पात्रता को पांच साल से कम कर एक साल किया जाना चाहिए क्योंकि कई संगठित क्षेत्रों में 80 प्रतिशत तक कर्मचारी ठेके पर काम कर रहे हैं।
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