फेसबुक की आभासी दुनिया मेटावर्स में बच्चों पर ‘पीडोफाइल’ की नजर गड़ी है। अगर जल्दी ही मेटावर्स में बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए कदम नहीं उठाए गए तो पीडोफाइल वहां उनको आसानी से आभासी यौन शोषण जनित उत्पीड़न का शिकार बनाते रहेंगे। यह नए तरह का खतरा है, जिसको लेकर सामाजिक स्तर पर जागरुकता नहीं के बराबर है। कानून एवं प्रवर्तन एजंसियों के लिए भी पूरी दुनिया में ‘पीडोफाइल’ (बच्चों का आभासी यौन शोषण जनित उत्पीड़न करने का इरादा रखने वाले लोग) इस आभासी दुनिया में नई चुनौती बन रहे हैं।
इनका निशाना वे बच्चे बनते हैं, जो अनजाने में या जानबूझ कर मेटावर्स में मौजूद आभासी ‘स्ट्रिप क्लब’ में पहुंचते हैं उनके साथ कई बालिग लोग आभासी तौर पर यौनाचार करते हैं। इसकी मिसाल ‘वीआर चैट’ जैसे लोकप्रिय ऐप में देखा जा चुका है। ऐसी घटनाओं के कारण मेटावर्स को कुछ जानकार ‘पीडोफाइल-पैराडाइज’ यानि बच्चों का यौन शोषण करने वालों की जन्नत बता चुके हैं।
वीआर हेडसेट लगाने के बाद जब कोई उस वर्चुअल दुनिया में डूब जाता है तो वहां सब कुछ सच ही लगता है। आपका शरीर और दिमाग जो देख रहा होता है वही उस पल उसकी सच्चाई होती है। जो हरकतें वयस्क लोगों को रोमांचक अनुभव लगती हैं, वे बच्चों को गहरा सदमा लगा सकती हैं।
सूचना तकनीक सलाहकार कंपनी काबुनी में मेटावर्स शोध विभाग की निदेशक नीना जेन पटेल कहती हैं, ‘जब हम मेटावर्स में यौन उत्पीड़न की बात करते हैं तो ये समझना चाहिए कि हम पूरी तरह उसमें डूबे होते हैं। उस डिजिटल माहौल में पूरी तरह मौजूद होते हैं। वह वीडियोगेम जैसा नहीं रहा, जिसे हम बस देखते हैं।
जब मेटावर्स में आपसे कोई गलत यौन हरकत करवाता है तो उसका आपके दिमाग और शरीर पर गंभीर असर होता है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।’ शोध के मुताबिक, बच्चों का दिमाग विकसित हो रहा होता है। इस कारण वे अक्सर असल और आभासी में फर्क नहीं कर पाते। ऐसे में किसी तरह के आभासी सेक्स दुर्व्यवहार का अनुभव बच्चों के दिमाग में दर्दनाक याद बन कर दर्ज हो सकता है।
दरअसल, मेटावर्स में घुसने के पहले कोई आपकी उम्र चेक नहीं करता। इसलिए बच्चे वहां तरह तरह के बड़ी उम्र के लोगों से आसानी से मिल पाते हैं। ज्यादातर आभासी मंच पर लोगों के आभासी ‘अवतार’ दिखते हैं। ऐसे ‘अवतारों’ के पीछे अपनी असली शक्ल छुपाने की सुविधा से पीडोफाइल को फायदा होता है। ‘वीआर चैट रूम्स’ में बच्चों के साथ गलत हरकतें करने के इरादे से गए लोग इसका पूरा फायदा उठाते हैं।
मेटावर्स के सबसे लोकप्रिय गेम में से एक ‘रोब्लाक्स’ में सोशल मीडिया और आनलाइन गेमिंग का मिश्रण है, जिससे उपयोक्ता खुद अपने हिसाब से नए-नए खेल खेल सकते हैं। रोजाना करीब छह करोड़ लोग ऐसा कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर 13 साल से कम उम्र के हैं। ‘रोब्लाक्स’ अपने मंच ‘कांडोज’ कहलाने वाले ‘सेक्स गेम्स’ को बढ़ावा नहीं देता। अमेरिकी संस्थान ‘कामन सेंस मीडिया’ ने पाया, ‘रोबलाक्स पर कई छोटी उम्र के बच्चे नाचते हैं और यौनिकता से जुड़ी हरकतें करते हैं। वे मंच से बाहर कहीं अपनी नंगी तस्वीरें भेजते हैं, ताकि बालिग लोगों से ‘रोबक्स’ पा सकें, जिन्हें असली पैसों में बदला जा सकता है।’
हाल में यौन कुंठा से जुड़ी आनलाइन तस्वीरों और वीडियो की तादाद कई गुना बढ़ी है। ऐसा ही वीआर ऐप्स में हुआ है। इसमें भी यौन अपराध से जुड़ी करीब तीन चौथाई सामग्री खुद बच्चों की बनाई हुई है। केवल 2021 के दौरान ही इसमें 28 फीसद बढ़ोत्तरी दर्ज हुई। इनमें से ज्यादातर में 10 से 13 साल के बीच की लड़कियां दिखती हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, करीब 34 फीसद बच्चों से कभी ना कभी आनलाइन कोई यौन हरकत करने की मांग की गई।
कैसे लगे अंकुश
कंपनियों को अपने मंच बच्चों के लिए सुरक्षित बनाने होंगे। आनलाइन बदमाशी करने वाले को ब्लाक करने और रिपोर्ट करने वाले फीचर जोड़ने होंगे। साथ ही अकाउंट बनाने और पहचान की प्रक्रिया फूलप्रूफ बनानी होगी। कोशिश हो कि मेटावर्स में अगर कोई 50 साल का आदमी 15 साल का बनने की कोशिश करे तो उसे वहीं पकड़ा जा सके और आगे ना बढ़ने दिया जाए। इस समय तो मेटावर्स में जिन कंपनियों का दबदबा है उनमें से ज्यादातर के दामन पर दाग लगे हैं।
जैसे मेटा, जो फेसबुक और इंस्टाग्राम की मालिक है। हालांकि मेटा ने तो अपने क्वेस्ट वीआर हेडसेट में कुछ प्रोटेक्टिव फीचर्स जोड़े थे। जैसे माता पिता बच्चों की खरीद को रद्द कर सकते हैं, खास ऐप को ब्लाक कर सकते हैं, स्क्रीनटाइम पर नजर रख सकते हैं और ये भी देख सकते हैं कि बच्चे ने किसे नया आनलाइन फ्रेंड बनाया है।