मथुरा: सत्याग्रही चलाते थे खुद की सरकार, स्थानीय लोगों को लुभाने को बेचते सस्ती चीनी और सब्जियां
मथुरा के जवाहर बाग में सत्याग्रह के आड़ में अतिक्रमी एक तरह से खुद का राज चला रहे थे। दो साल तक कब्जे के दौरान स्वाधीन भारत सुभाष सेना के लोगों ने यहां पर पक्के निर्माण बना लिए।

मथुरा के जवाहर बाग में सत्याग्रह के आड़ में अतिक्रमी एक तरह से खुद का राज चला रहे थे। दो साल तक कब्जे के दौरान स्वाधीन भारत सुभाष सेना के लोगों ने यहां पर पक्के निर्माण बना लिए। पेड़ों को काट दिया और बाग को उजाड़ दिया। साथ ही अस्पताल, स्कूल और मकान तक बना लिए। साथ ही रखवाली के लिए चौकीदार भी नियुक्त कर दिए। इस दौरान जवाहर बाग में रहे उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के 48 साल के राम लाल ने बताया, ”शारीरिक आजादी तो मिल गई मगर आर्थिक आजादी न हीं मिली। आर्थिक आजादी को पाने के लिए हम निकल पड़े। ”
उन्होंने बताया, ”हमें तो जंतर मंतर जाना था मगर परमिशन नहीं मिली जो रूक गए मथुरा में।” 14 मार्च 2014 को मथुरा में उनका ठहराव हुआ जो दो साल तक चला। इन दो सालों में इन्होंने जवाहर बाग को अलग ही रूप में बदलते देखा। इसमें 2000 लोग रहते थे, अस्पताल, स्कूल, बिजली बैक अप व स्ट्रीट लाइट और कच्चे व पक्के घर शामिल थे। 270 एकड़ के इस जमीन की रखवाली के लिए एक दर्जन चौकीदार 24 घंटे पहरा देते थे।
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जवाहर बाग के पास ही रहने वाली लक्ष्मी सिंह ने बताया, ”यह अलग ही सभ्यता थी। वे लोग गांव वालों से बात नहीं करते और रोजाना उनका ट्रेन कार्यक्रम चलता। बच्चों को सुबह व शाम को ट्रेन दी जाती। अनाज और अन्य खाद्य सामग्री से भरे ट्रक आते। नर्सरी के बाहर लग्जरी गाडि़यां खड़ी रहती। हम यह सोचकर हैरान होते कि इतना पैसा कहां से आता है।”
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जवाहर बाग में तीन महीने चीजें बदलना शुरू हुई। प्रदर्शनकारियों ने सस्ते दामों पर चीनी व सब्जियां देकर स्थानीय लोगों को लुभाने की कोशिश की। हालांकि इससे कोई फायदा नहीं हुआ। लक्ष्मी सिंह बताती हैं, ”वे हमें 25 रुपये किलो चीनी देते थे। इसी तरह से सब्जियां कम कीमतों पर मिलती थी। एक अलग से बाजार लगाया गया। लेकिन हम इससे प्रभावित नहीं हुए। हम चाहते थे उन्हें यहां से निकाला जाए।” राम लाल ने बताया कि बच्चों की ट्रेनिंग पर विेशेष ध्यान दिया जाता था। उन्हें विशेष तौर पर लाए गए अध्यापकों से अंग्रेजी बोलने और फिजीकल ट्रेनिंग दी जाती थी। उन्होंने कहा, ”फिजीकल ट्रेन शाम को होती थी। उन्हें कई तरह का प्रशिक्षण दिया जाता था।”
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