Maharashtra: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की महाराष्ट्र इकाई ने पार्टी आलाकमान से राज्य में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराने की गुजारिश की है। राज्य इकाई का मानना है कि इससे पीएम मोदी के जादू का फायदा महाराष्ट्र भाजपा को भी मिलेगा। महाराष्ट्र भाजपा ने कहा है कि राज्य विधानसभा चुनाव को करीब पांच-छह महीने पहले कराने के उसके प्रस्ताव पर विचार किया जाए, ताकि इसे अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ-साथ कराया जा सके। वहीं भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस प्रस्ताव के नफा-नुकसान पर विचार कर रहा है। हालांकि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व आमतौर पर समय से पहले चुनाव कराने के विचार के खिलाफ रहा है।
महाराष्ट्र भाजपा के सूत्रों ने कहा, ‘पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने पहले संकेत दिया था कि वो लोकसभा चुनाव के साथ राज्य विधानसभा का चुनाव एक साथ नहीं कराना चाहेगी, क्योंकि एक साथ चुनाव कराने से राज्य इकाई के साथ-साथ केंद्रीय नेतृत्व पर भी बोझ पड़ेगा, क्योंकि उन्हें दो जगह प्रचार का जिम्मा उठाना होगा।’ फिर भी महाराष्ट्र भाजपा एक साथ चुनाव कराने के लिए जोर दे रही है।
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा इस प्रस्ताव के लिए इसका औचित्य कई तथ्यों पर आधारित है, क्योंकि कांग्रेस, राकांपा और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) मतलब महा विकास अघाडी (एमवीए) आने वाले चुनावों में एक मजबूत गठबंधन होगा। एमवीए का सामाजिक अंकगणित किसी भी चुनावी लड़ाई में भाजपा और उसके सहयोगी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के लिए एक कठिन चुनौती पेश करना होगा।
भगवा पार्टी के दिमाग पर एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि शिवसेना में विभाजन और उद्धव सरकार के पतन के बावजूद सेना (यूबीटी) अभी भी जमीनी स्तर पर अपना समर्थन और आधार बनाए रखने में कामयाब रही है।
नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ भाजपा पदाधिकारी ने कहा, “शिंदे ने उद्धव की पार्टी को विभाजित कर दिया। उन्होंने शिवसेना के 56 में से 40 विधायकों को और 18 में से 12 लोकसभा सांसदों को अपने पक्ष में कर लिया, लेकिन फिर भी उद्धव सेना का वोट बैंक पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। इसने एमवीए के सामाजिक गठबंधन को मजबूत किया है। जिसके समर्थन में अन्य समुदायों के बीच मराठों और ओबीसी का एक महत्वपूर्ण वर्ग है।
2019 विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली थीं 105 सीट
अक्टूबर 2019 के राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा और उद्धव के नेतृत्व वाली अविभाजित शिवसेना ने कांग्रेस-राकांपा गठबंधन के खिलाफ सहयोगी के रूप में एक साथ चुनाव लड़ा, जिसमें राज्य की 288 सीटों में से भाजपा ने 105 सीटों पर, शिवसेना ने 56, कांग्रेस ने 44 और राकांपा ने 56 सीटों पर जीत हासिल की। पार्टीवार वोट शेयर में तब बीजेपी को 25.75%, शिवसेना को 16.41%, NCP को 16.71% और कांग्रेस को 15.87% वोट मिले थे।
शिंदे कैबिनेट में भाजपा के एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा, “लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग होने चाहिए या एक साथ इस पर हमारे राज्य और केंद्रीय नेतृत्व के बीच विभिन्न मंचों पर चर्चा चल रही है। जिस पर अभी तक फैसला नहीं हो सका है। उन्होंने कहा कि हमारे राज्य भाजपा प्रमुख चंद्रशेखर बावनकुले ने राज्य का व्यापक दौरा किया है और पार्टी को चुनाव मोड में डाल दिया है। हम जल्दी चुनाव के लिए तैयार हैं। हम एक साथ चुनाव कराने के लिए तैयार हैं।
मोदी का जादू मतदाताओं को कर सकता आकर्षित
विधानसभा चुनावों को आम चुनावों के साथ कराने के लिए राज्य भाजपा के तर्क के बारे में बताते हुए मंत्री ने कहा, “भाजपा का मानना है कि नरेंद्र मोदी का जादू जो लोकसभा चुनावों में मतदाताओं को आकर्षित करेगा उसका फायदा विधानसभा चुनावों में महाराष्ट्र भाजपा के लिए भी फायदेमंद होगा, क्योंकि उस वक्त चुनाव प्रचार अपने चरम पर होगा और हम विधानसभा चुनाव में भी इसका फायदा उठा सकते हैं।”
वहीं राज्य भाजपा ने 2024 में राज्य में सूखे के पूर्वानुमान के बारे में केंद्रीय नेतृत्व को भी सूचित किया है। डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने बजट सत्र के दौरान राज्य विधानसभा को बताया था कि कैसे इस गर्मी में पानी की कमी एक चिंता का विषय हो सकती है, जबकि सूखे से निपटने के उपायों पर जोर दिया जा रहा है।
भाजपा को यह भी आशंका है कि अगली गर्मियों के दौरान सूखे की संभावित स्थिति में किसानों के बीच अधिक अशांति हो सकती है, जो अक्टूबर 2024 में अलग से विधानसभा चुनाव होने पर इसकी संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकती है। भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है।
भाजपा का मानना है कि एमवीए घटकों के बीच सीटों का बंटवारा आसान नहीं होगा, क्योंकि हर सीट के लिए उनके बीच मारामारी हो सकती है, जिससे बड़ी संख्या में टिकट चाहने वालों और यहां तक कि मौजूदा विधायकों को भी टिकट देने से इनकार किया जा सकता है। राज्य के उद्योग मंत्री उदय सामंत ने कहा, ‘कांग्रेस, एनसीपी, सेना (यूबीटी) के कम से कम 10-12 विधायक हमारे संपर्क में हैं। चुनाव से ठीक पहले वे हमारे उम्मीदवार के रूप में सामने आएंगे।’
विपक्ष भी एक साथ चुनाव कराने की भाजपा की चाल पर नजर रख रहा है। राकांपा के वरिष्ठ नेता और विपक्ष के नेता अजीत पवार ने कहा, “मेरे पास कोई आधिकारिक सूचना नहीं है, लेकिन मेरा अनुमान है कि भाजपा लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना चाहेगी।”
एक महीने पहले गृह नगर नागपुर में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम फडणवीस ने कहा था कि उन्हें 2024 तक “मल्टी-टास्किंग” की आदत डालने चाहिए। हालांकि उनका संदेश संगठनात्मक कार्य के संदर्भ में था।
नौ महीने पहले कार्यभार संभालने वाली शिंदे-फडणवीस सरकार ने भले ही विभिन्न नीतियों और कार्यक्रमों को तेजी से आगे बढ़ाया हो, लेकिन यह अभी भी चुनावों में जनता के साथ तालमेल बिठाने के लिए एक नैरेटिव की तलाश में है। पार्टी ने विद्रोही शिंदे सेना गुट के साथ मिलकर जो ऑपरेशन किया, उसने एमवीए सरकार को गिरा दिया, लेकिन सत्तारूढ़ खेमे के लिए एक चिंता की बात यह है कि उद्धव सेना एक ताकत बनी हुई है।
भाजपा एक रणनीतिकार ने 1999 विधानसभा चुनाव का दिया हवाला
हालांकि भाजपा के भीतर एक विचार यह भी है कि मतदाताओं को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। बीजेपी के एक रणनीतिकार ने कहा, ‘1999 में हमने विधानसभा चुनाव छह महीने पहले करा लिए थे। एक साथ चुनाव नुकसानदायक साबित हुए। हालांकि बीजेपी-शिवसेना ने लोकसभा में 48 में से 28 सीटें जीतकर अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस-एनसीपी ने छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ 146 सीटें जीतीं। और एनडीए महज 131 सीटों पर सिमट गई।