जजों की नियुक्ति को लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच गतिरोध? कानून मंत्री रविशंकर ने दिया ये जवाब
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकार हाईकोर्ट में तेजी से रिक्तियां भरने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि एक सितम्बर तक विभिन्न उच्च न्यायालयों में 48 नये न्यायाधीशों की नियुक्तियां हुई हैं। देश में 25 उच्च न्यायालय हैं, जिनमें न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 1079 है।

कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति को लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच गतिरोध नहीं है और जब भी इस मुद्दे पर मतभेद होता है, तो दोनों परस्पर परामर्श कर उपयुक्त लोगों की नियुक्ति सुनिश्चित करते हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान रिक्तियों को तेजी से भरने के लिए हरसंभव प्रयास किया जाता है।
कानून मंत्री ने कहा कि लेकिन सेवानिवृत्ति, इस्तीफा या न्यायाधीशों की पदोन्नति के कारण रिक्तियां बढ़ती जाती हैं। प्रसाद ने द्रमुक के राज्यसभा सदस्य पी. विल्सन को लिखे पत्र में ये टिप्पणियां कीं। कानून मंत्री इस वर्ष फरवरी में बजट सत्र के दौरान हाईकोर्ट में जजों की कमी पर शून्य काल के दौरान विल्सन द्वारा उठाए गए मुद्दे का जवाब दे रहे थे। विल्सन ने 5 अक्टूबर को ट्विटर पर प्रसाद के पत्र को साझा किया।
मंत्री के कार्यालय ने पुष्टि की कि इस तरह का पत्र लिखा गया है। राज्यसभा सदस्य ने इस मुद्दे पर ऊपरी सदन में उनके भाषण का क्लिप साझा किया जिसमें उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि संसद जजों की नियुक्ति को लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच गतिरोध को सुलझाए।
पूर्व अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल विल्सन ने दावा किया कि सरकार जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित करीब 230 नामों को दबाकर बैठी है। कानून मंत्री ने 28 सितम्बर को लिखे अपने पत्र में कहा कि जजों की नियुक्ति के लिये ज्ञापन प्रक्रिया के मुताबिक हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के प्रस्ताव की शुरुआत हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस करते हैं।उन्होंने कहा कि एक सितम्बर तक हाईकोर्ट में 398 रिक्तियां थीं।
प्रसाद ने कहा, ‘‘वर्तमान रिक्तियों को भरने के लिए हरसंभव प्रयास जारी है, लेकिन जजों की सेवानिवृत्ति, इस्तीफा या पदोन्नति के कारण रिक्तियां बढ़ती जाती हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच गतिरोध नहीं है। उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की रिक्तियां को भरा जाना कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सतत सामूहिक प्रक्रिया है और इसमें विभिन्न संवैधानिक प्राधिकरणों के बीच विचार-विमर्श और मंजूरी आवश्यकता होती है।’’
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