दक्षिणी राज्य केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने दो साल की सेवा पूरा करने वाले राज्य सरकार के सभी मंत्रालयों के स्टाफ़ को मिलने वाले मासिक पेंशन की नीति ख़त्म करने की मांग की है। राज्यपाल की इस मांग से उनके और राज्य सरकार के बीच विवाद की स्थिति बन गई है।
हमारे सहयोगी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस में छपे कूमी कपूर के कॉलम इनसाइड ट्रैक के अनुसार केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने मांग की है कि राज्य की पिनराई विजयन सरकार मंत्रियों के पर्सनल स्टाफ को दो साल तक अपनी सेवा देने के बाद मिलने वाले मासिक पेंशन की नीति को ख़त्म करे। आरिफ मोहम्मद खान का आरोप है कि यह पेंशन सरकारी खर्च पर माकपा कार्यकर्ताओं को स्थाई वेतन देने का अवैध तरीका है।
राज्य की सीपीएम सरकार के मंत्री आम तौर पर लगभग 20 स्टाफ सदस्यों को नियुक्त करते हैं और उन्हें हर दो साल में बदल दिया जाता है। राज्यपाल का आरोप है कि मंत्रियों में लगभग सभी माकपा कार्यकर्ता हैं। केरल के राज्यपाल की तरह तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि भी तमिलनाडु के 38 जिलों में से प्रत्येक जिलों में प्रचार अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर डीएमके सरकार की योजना पर सवाल उठा रहे हैं।
राज्यपाल के द्वारा उठाए जा रहे इस मांग पर राज्य सरकार की नेतृत्व करने वाली सीपीएम ने दो टूक कहा है कि मंत्रियों के पर्सनल स्टाफ की मासिक पेंशन को ख़त्म नहीं की जाएगी। सीपीएम ने साफ़ कहा कि इस पेंशन की शुरुआत साल 1984 में हुई थी और इसे तत्कालीन यूडीएफ सरकार ने शुरू किया था। इसलिए सिर्फ राज्यपाल के विरोध के कारण इस पेंशन योजना को बंद नहीं किया जा सकता है। मंत्रियों के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए उनके निजी स्टाफ को पेंशन देना जरूरी है।
बीते दिनों इस मुद्दे को लेकर केरल विधानसभा में विधायकों ने राज्यपाल वापस जाओ के नारे भी लगाए गए। इतना ही नहीं राज्य की कम्युनिस्ट सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर कहा कि संविधान के नियमों के तहत राज्यपाल की नियुक्ति से पहले उस राज्य के सरकारों से सलाह जरूर लेनी चाहिए।