भारतीय गणराज्य में जम्मू-कश्मीर का विलय काफी पेचीदा हालात में हुआ। विलय के वक्त तत्कालीन कश्मीर रियासत के राजा हरि सिंह कुछ निश्चित शर्तों के साथ भारत में शामिल होने पर राजी हुए। विलय के संबंध में दस्तावेज जिसे ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसशन’ कहा गया, उससे जुड़ी अनुसूची ने भारतीय संसद को केवल रक्षा, विदेश मामलों और संचार पर दखल देने का अधिकार दिया। समझौते के क्लॉज-5 में कश्मीर के राजा हरि सिंह ने साफ तौर पर उल्लेख किया, “इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन के मुताबिक नियम या अधिनियम भारतीय स्वतंत्रता अधिनयम के किसी भी संशोधन से अलग नहीं हो सकते। लेकिन, कोई भी संशोधन तभी हो सकता है, जब वह मेरे द्वारा स्वीकार किया जाए।”
राजा हरि सिंह ने शुरू में भारत और पाकिस्तान के साथ स्वतंत्र और हस्ताक्षर समझौते पर बने रहने का फैसला किया था और पाकिस्तान ने वास्तव में इस पर हस्ताक्षर भी किए थे। लेकिन पाकिस्तान से आए कबायली और सेना के लोगों के आक्रमण के बाद, उन्होंने भारत से मदद मांगी। जिसके बदले में कश्मीर के भारत में विलय करने का प्रस्ताव रखा गया। हरि सिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 को इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसेशन पर हस्ताक्षर किए और गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने 27 अक्टूबर, 1947 को इसे स्वीकार कर लिया।
समझौते के दौरान लॉर्ड माउंटबेटन ने कहा कि “यह मेरी सरकार की इच्छा है कि जैसे ही कश्मीर में कानून-व्यवस्था बहाल हो जाए और उसकी धरती पर आक्रमणकारियों को हटा दिया जाए, तब जनमत संग्रह के जरिए विवाद को सुलझाया जाएगा।” 17 मई, 1949 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सरदार पटेल और एन गोपालस्वामी अयंगर को जानकारी देते हुए तक्कालीन कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला को चिट्ठी लिखी थी। जिसमें उन्होंने कहा था, “भारत में यह नीति तय की गई है, जिस पर कई मौकों पर मेरे और सरदार पटेल के बीच बातचीत हुई है। इसके मुताबिक जम्मू-कश्मीर के संविधान का फैसला संविधान सभा में राज्य के प्रतिनिधियों द्वारा की जाएगी।”
आरक्षण बिल के बाद पुनर्गठन विधेयक भी राज्यसभा से पास