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…जब 21 साल की मायावती से कांशीराम ने कहा था- तुम्हारे पीछे IAS अफसरों की लाइन लगा दूंगा

Kanshiram BSP Party Founder: 1984 में बनी बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम का नारा था ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी, लेकिन 2003 में पूरी तरह से मायावती के हाथों में बहुजन समाज पार्टी की कमान आने के बाद वह नारा बदल गया। नया नारा लगा, ‘जिसकी जितनी तैयारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।’

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Kanshiram BSP Party Founder: ताजमहल में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कांशीराम और मायावती। (फोटो सोर्स: एक्सप्रेस अर्काइव)

Kanshiram BSP Party Founder: बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम जिन्होंने उत्तर भारत में पहली बार दलितों को सत्ता के शिखर तक पहुंचाया। दलित समाज को एकजुट करके पूरी हिंदी पट्टी का राजनीतिक गठजोड़ बदलने वाले कांशीराम का आज बुधवार (15 मार्च) को जन्मदिन है। इस मौके पर कांशीराम से जुड़े कुछ खास दिलचस्प किस्सों की बात करते हैं, जिनकी काफी चर्चा होती है। कांशीराम ने सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति शुरू की थी। साल 1958 में कांशीराम पुणे में डीआरडीओ में लैब असिस्टेंट के पद पर कार्यरत थे, लेकिन नौकरी के दौरान एक ऐसी घटना हुई कि वो दलित राजनीति की ओर मुड़ गए।

कांशीराम की जीवनी लिखने वाले प्रोफेसर बद्रीनारायण लिखते हैं, ‘उनके ऑफिस में फुले के नाम पर कोई छुट्टी कैंसिल कर दी गई थी। इसका उन्होंने विरोध किया। तमाम कोशिशों के बावजूद दलित कर्मचारी एकजुट हुए तो वो छुट्टी कर दी गई। इस घटना के बाद उन्हें समझ आ गया, जब तक दलित कर्मचारी एकत्रित नहीं होंगे। तब तक हमारी बात नहीं सुनी जाएगी।

21 साल की मायावती में दिखी भविष्य की दलित नेता

साल 1977 की बात है। मायावती उस वक्त 21 साल की थीं और दिल्ली के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती थीं। कांशीराम ने दिल्ली के एक कार्यक्रम में मायावती को जोरदार भाषण देते सुना। मायावती के भाषण को सुनकर कांशीराम काफी प्रभावित हुए और उनके पिता से मायावती को राजनीति में भेजने की गुजारिश की, लेकिन जब पिता ने बात को टाल दिया तो मायावती ने अपना घर छोड़ दिया और वो पार्टी ऑफिस में रहने लगीं।
3 जून 1995 को मायावती उत्तर प्रदेश की सबसे युवा और दलित महिला मुख्यमंत्री बनीं। 2001 में कांशीराम ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

दलितों पर ज्यादती बर्दाश्त नहीं

कांशीराम पर किताब लिखने वाले एसएस गौतम उनके शुरुआती दिनों को बताते हैं कि एक बार कांशीराम किसी ढाबे पर बैठे थे। वहां कुछ ऊंची जाति के लोग आपस में बैठकर बात कर रहे थे। उनकी बात का मजमून ये था कि उन्होंने सबक सिखाने के लिए दलितों की जमकर पिटाई की। इसे सुनकर कांशीराम बिफर पड़े और बात मारपीट तक आ पहुंची।

राष्ट्रपति पद का ऑफर ठुकराया

कांशीराम इस बात को भलीभांति जानते थे कि राजनीति के जरिए ही दलितों की किस्मत बदलेगी। प्रोफेसर बद्रीनारायण उनसे जुड़ा हुआ एक और किस्सा बताते हैं। वो कहते हैं कि एक बार अटल बिहारी वाजपेयी ने कांशीराम को राष्ट्रपति बनने का ऑफर दिया। कांशीराम ने कहा कि राष्ट्रपति क्या, मैं तो प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं।

नारे लगाने से पहले कहते थे ऊंची जाति वाले चले जाएं

कांशीराम के कई चर्चित नारे आज भी याद किए जाते हैं। ‘बहन जी’ किताब के लेखक अजय बोस लिखते हैं, ‘एक बार कांशीराम मंच पर भाषण देने के लिए खड़े हुए। उन्होंने शुरुआत में ही कहा कि अगर सुनने वालों में ऊंची जाति के लोग हों तो वो अपने बचाव के लिए यहां से चले जाएं।

नींबू की तरह क्यों निचोड़ेंगे, वैसे ही छोड़ देंगे

एक इंटरव्यू के दौरान कांशीराम से पूछा गया कि आपकी बातों से लगता है कि सत्ता में आने के लिए आप किसी का भी इस्तेमाल कर लेंगे। नींबू की तरह निचोड़कर नरसिम्हा राव को फेंक देंगे? इस सवाल के जवाब कांशीराम ने कहा था कि नींबू की तरह निचोड़कर नहीं, वैसे ही छोड़ देंगे। निचोड़ने की क्या जरूरत है। कांशीराम का जो मुख्य फोकस था, वो था दलितों को सत्ता तक पहुंचाना।

हरवाहा से हाकिम बनने का मंत्र

पढ़े-लिखे और नौकरी पेशा दलितों को एक करने के लिए कांशीराम ने 14 अप्रैल 1973 को ऑल इंडिया बैकवर्ड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्प्लाइज फेडरेशन (बामसेफ) का गठन किया। कांशीराम का मानना था कि पढ़े-लिखे को समझाना है। 80 के दशक में बामसेफ की बैठकों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले संजय निषाद एक इंटरव्यू में बताते हैं कि कांशीराम कहते थे, ‘ जब तक दलितों के मस्तिष्क में दूसरी पार्टियों का कब्जा होगा, तब तक उनके घर हरवाहा पैदा होगा। अगर दलितों के मस्तिष्क में उनकी पार्टी का कब्जा होगा, तो उनके घर हाकिम पैदा होगा। नौकरी पेशा दलितों को एकजुट करने की कोशिश कांशीराम की काफी हद तक सफल रही।

जब कांशीराम के कहने पर मुलायम सिंह ने सपा बनाई

कांशीराम ने एक इंटरव्यू में कहा था कि यदि मुलायम सिंह से वे हाथ मिला लें तो उत्तर प्रदेश से सभी दलों का सुपड़ा साफ हो जाएगा। मुलायम सिंह को उन्होंने केवल इसीलिए चुना था, क्योंकि वही बहुजन समाज के मिशन का हिस्सा थे। इसी इंटरव्यू को पढ़ने के बाद मुलायम सिंह यादव दिल्ली में कांशीराम से मिलने उनके निवास पर गए थे। उस मुलाकात में कांशीराम ने नये समीकरण के लिए मुलायम सिंह को पहले अपनी पार्टी बनाने की सलाह दी और 1992 में मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी का गठन किया। 1993 में समाजवादी पार्टी ने 256 सीटों पर और बहुजन समाज पार्टी ने 164 सीटों पर विधानसभा के लिए चुनाव लड़ा और पहली बार उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज की सरकार बनाने में कामयाबी भी हासिल की थी।

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First published on: 15-03-2023 at 23:08 IST
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