Collegium System: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के एक पूर्व न्यायाधीश ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) की हालिया टिप्पणी को आलोचना करार दिया। पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन (Rohinton Fali Nariman) ने शुक्रवार को कहा कि अगर स्वतंत्र न्यायपालिका का आखिरी गढ़ गिर जाता है, तो देश अंधकार के रसातल में चला जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि कॉलेजियम द्वारा सिफारिश किए गए नामों को रोकना लोकतंत्र के खिलाफ घातक था।
जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार और Collegium के बीच खींचतान
जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार और कॉलेजियम (Collegium) के बीच खींचतान जारी है। केंद्र सरकार जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम सिस्टम में प्रतिनिधित्व चाहती है। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू का कहना है कि सरकार का कॉजेजियम द्वारा भेजे नामों को आंख मूंदकर अप्रूव करना नहीं है।
न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर सरकार और न्यायपालिका के बीच गतिरोध के बीच यह टिप्पणी आई है। रिजिजू ने बार-बार कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठाया है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी न्यायपालिका की तुलना में विधायिका की शक्तियों पर मूल संरचना के सिद्धांत को उठाया और एनजेएसी अधिनियम को हड़पने को संसदीय संप्रभुता से गंभीर समझौता कहा।
Kiren Rijiju के बयान पर दिया जवाब
मुंबई विश्वविद्यालय के कानून विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए शुक्रवार को जस्टिस नरीमन ने कहा, “हमने कानून मंत्री को न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया की आलोचना करते हुए सुना है। मैं कानून मंत्री को बताना चाहता हूं कि दो बहुत ही मूलभूत संवैधानिक मूलभूत हैं जिन्हें आपको अवश्य जानना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “एक मौलिक बात यह है कि कम से कम पांच अनिर्वाचित न्यायाधीशों पर संविधान का भरोसा है और एक बार उन पांच या अधिक ने उस मूल दस्तावेज़ की व्याख्या कर ली है तो यह अनुच्छेद 144 के तहत आपका बाध्य कर्तव्य है कि आप उसका पालन करें।” जस्टिस नरीमन ने कहा, “एक नागरिक के रूप में मैं आलोचना कर सकता हूं, कोई समस्या नहीं है लेकिन यह कभी नहीं भूलें कि आप एक अथॉरिटी हैं और एक अथॉरिटी के तौर पर आप सही या गलत के फैसले से बंधे हैं।”
Collegium की सिफ़ारिश के 30 दिन के अंदर जवाब दे सरकार
पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन ने सुझाव दिया कि सुप्रीम कोर्ट को न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया के सभी ढीले सिरों को बांधने के लिए एक संवैधानिक पीठ का गठन करना चाहिए और इसे ‘पांचवा न्यायाधीश केस’ कहना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक बार कॉलेजियम द्वारा किसी न्यायाधीश के नाम की सिफारिश करने के बाद सरकार को 30 दिनों के निश्चित समय के भीतर जवाब देना चाहिए। पूर्व जज ने कहा कि नामों को इस तरह रोक कर रखना इस देश में लोकतंत्र के खिलाफ बहुत घातक है।”
(Story by Omkar Gokhale)