हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया भी हो सार्वजनिक, CJI का दफ्तर RTI के दायरे में आने के बाद बोले जस्टिस चंद्रचूड़
भारत के प्रधान न्यायाधीश कार्यालय को सार्वजनिक प्राधिकार बताते हुए उसके सूचना के अधिकार के दायरे में आने का फैसला देने वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता जजों को सक्षम बनाती है कि वे बिना किसी डर के मामलों में फैसला कर सकें।

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने उच्चतर न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति संबंधी सूचना के खुलासे की पैरवी करते हुए बुधवार को कहा कि कॉलेजियम ‘‘अपनी ही प्रसव पीड़ा का शिकार’’ है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि चिकित्सा सूचना, निजी संबंध, कर्मचारी रिकॉर्ड और न्यायाधीशों की पेशेवर आय को ‘निजी सूचना’ मानकर गोपनीय कहा जा सकता है और इसका खुलासा जनहित के आधार पर मामला-दर-मामला के आधार पर किया जाएगा।
भारत के प्रधान न्यायाधीश कार्यालय को सार्वजनिक प्राधिकार बताते हुए उसके सूचना के अधिकार के दायरे में आने का फैसला देने वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता जजों को सक्षम बनाती है कि वे बिना किसी डर के मामलों में फैसला कर सकें। 113 पन्नों के अलग लेकिन मिलते-जुलते फैसले में उन्होंने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता और स्वतंत्र रूप से कानून लागू करने की न्यायाधीशों की क्षमता, कानून के शासन के लिए महत्वपूर्ण है।
न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी सूचना के खुलासे की पैरवी करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘महत्वपूर्ण मामलों में, कॉलेजियम अपनी ही प्रसव पीड़ा का शिकार है।’’ उन्होंने कहा कि इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि यह जानने में जनता की बहुत रुचि रहती है कि उच्चतर न्यायपालिका के लिए उम्मीदवारों के चयन और न्यायिक नियुक्तियों में किन नियमों का पालन किया गया है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘ज्ञान एक शक्तिशाली उपकरण है जो वह विश्वास पैदा करता है, जो न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया की शुचिता के लिए जरूरी है। यह जरूरी है क्योंकि कॉलेजियम व्यवस्था यह अभिधारणा बनाती है कि जजों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव स्वयं न्यायाधीशों द्वारा आगे बढ़ाए जाते हैं ।’’उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीशों की संपत्ति संबंधी सूचना, जजों की ‘‘निजी सूचना’’ नहीं कही जा सकती और इसलिए इसमें निजता के अधिकार का मामला नहीं है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘न्यायपालिका की एकनिष्ठा, स्वतंत्रता और निष्पक्षता, न्याय तक प्रभावी और पक्षपात रहित पहुंच के लिए पूर्व शर्त है। और साथ ही अधिकारों के संरक्षण के लिए भी यह महत्वपूर्ण है।’’ उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि जवाबदेही तय करने वाले सुधार लाने में विफल रहने से अदालतों की निष्पक्षता में भरोसा खत्म होगा और इससे मूल न्यायिक कामकाज को नुकसान पहुंचेगा।
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