नेशनल लायर्स कैंपेन फॉर जूडिशियल ट्रांसपरेंसी एंड रिफार्म्स (NLC) के प्रेजीडेंट ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाते हुए याचिका दायर की है कि सीनियर एडवोकेट के डेजीगनेशन पर जजों, मंत्रियों और दिग्गज वकीलों के बच्चों और रिश्तेदारों का एकाधिकार सा बन गया है। मैथ्यूज जे नेदमपारा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ से गुहार लगाई कि वो इस पर ध्यान दें। सीजेआई ने उनकी याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि वो खुद केस को सुनेंगे। मामले की सुनवाई के लिए 20 मार्च की तारीख तय की गई है।
एडवोकेट एक्ट 1961 के अंडर सेक्शन 16 और 23(5) के तहत किसी वकील को सीनियर का दर्जा दिया जाता है। सीनियर का दर्जा मिलने के बाद वकील को काफी सारे विशेष अधिकार मिलते हैं।
नेदमपारा का कहना है कि सीनियर के तहत मिलने वाले ये अधिकार कुछ खास लोगों को ही मिल हैं। ये लोग बेहद ताकतवर हैं। इनमें सरकार के मंत्रियों के साथ मजबूत नेता, दिग्गज वकील और जजों से जुड़े लोगों को ये विशेष अधिकार बड़े आराम से मिल जाता है। आम वकील सीनियर का दर्जा हासिल करने के लिए सारी उम्र एड़ियां घिसता रह जाता है।
उनका कहना है कि इस वजह से आम वकीलों के साथ अदालतों में भेदभाव किया जाता है। वो चाहें कितनी भी कोशिश कर लें लेकिन उनके नाम के साथ सीनियर नहीं जुड़ पाता, क्योंकि उनकी सिफारिश लगाने के लिए उनके पीछे कोई मजबूत शख्स नहीं होता है। ये भेदभाव तकरीबन हर जगह पर किया जा रहा है।
नेदमपारा का कहना है कि इस भेदभाव की वजह से आम लोगों के साथ भी अन्याय हो रहा है। वो अपने केस की सुनवाई के लिए सीनियर एडवोकेट को हायर नहीं कर सकते। सीनियर एडवोकेट को कोर्ट में विशेष तरजीह मिलती है। ये लोग बड़ी मछलियों का केस ही अपने हाथ में लेते हैं। सीनियर का दर्जा मिलने के बाद कोई भी एडवोकेट आम आदमी की पैरवी के लिए तैयार नहीं होता। नेदमपारा का कहना है कि इंग्लैंड में 18वीं सदी में महारानी या राजा के केस की पैरवी करने वाले वकीलों को विशेष दर्जा हासिल होता था। ये परंपरा भारत में भी बदस्तूर चली आ रही है।