‘दि कश्मीर फाइल्स’ फिल्म पर मचे हो-हल्ले और विवाद के बीच जम्मू और कश्मीर पुलिस ने अनटोल्ड कश्मीर फाइल्स (Untold Kashmir Files) जारी की है। 57 सेकेंड की इस वीडियो क्लिप को जारी करते हुए पुलिस की ओर से दावा किया गया है कि घाटी में हर मजहब के लोग आतंकवाद के शिकार हुए हैं।
पुलिस की तरफ से जारी की गई इस क्लिप का मकसद यह रेखांकित करना है कि कैसे सभी कश्मीरी (आस्था से परे) उग्रवाद के शिकार हुए थे।
‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ को जम्मू-कश्मीर के एक पुलिस अधिकारी ने इस शॉर्ट क्लिप के बारे में बताया, “यह नागरिकों तक पहुंचने का एक प्रयास है कि हम उनके दर्द को समझते हैं और आतंकवाद के खिलाफ हम सभी इस लड़ाई में एक साथ हैं।”
यह वीडियो 31 मार्च, 2022 को जम्मू-कश्मीर पुलिस के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट किया गया था। संयोग से (चार अप्रैल को) घाटी में प्रवासियों और कश्मीरी पंडितों पर हमलों में एक नई तेजी देखी गई।
अफसर के अनुसार, ‘द कश्मीर फाइल्स’ कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा पर केंद्रित है, लेकिन यहां कई लोगों को लगता है कि फिल्म घाटी में आतंकवाद के कारण कश्मीरी मुसलमानों की पीड़ा को पूरी तरह से नजरअंदाज करती है।
पुलिस के टि्वटर हैंडल से शेयर की गई क्लिप उस शॉट के साथ शुरू होगी, जिसमें 27 मार्च को घाटी में एक स्पेशल पुलिस अधिकारी (एसपीओ) और उसके जुड़वां भाई की संदिग्ध आतंकवादियों द्वारा हत्या का जिक्र करते हुए शोक में डूबी महिलाएं दिखाई गई हैं। पीड़ितों की तस्वीरों के साथ फ्रेम में लिख कर आता है कि “आतंकवादियों ने एसपीओ इशफाक अहमद के घर में घुसकर उसे उसके भाई उमर जान के साथ मार डाला।
शोक मनाने वालों की तस्वीरों के साथ आगे लिखकर आता है, “कश्मीर में इन निशाना बनाकर की गई हत्याओं में 20,000 लोगों की जान गई है। समय आ गया है कि हम बात करें।”
इस दौरान बैकग्राउंड ऑडियो में मशहूर पाकिस्तानी कवि फैज अहमद फैज की कविता “हम देखेंगे” की पक्तियों का इस्तेमाल किया गया है, जिसका उपयोग “द कश्मीर फाइल्स” में भी किया गया था।
विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में बनी “दि कश्मीर फाइल्स” 11 मार्च को रिलीज हुई थी। इस फिल्म को कई केंद्रीय मंत्रियों का समर्थन मिला था और अधिकांश भाजपा शासित राज्यों में इसे टैक्स फ्री भी कर दिया गया था।
पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि इसने “समूचे इकोसिस्टम” को हिलाकर रख दिया था, जो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पथ प्रदर्शक होने का दावा करता है, लेकिन नहीं चाहता कि सच कहा जाए।
फिल्म ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर भी चिंता जताई थी। रिलीज के बाद दिल्ली में पुलिस को “मिली-जुली आबादी” वाले इलाकों में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए कह दिया गया था।