किसान आंदोलन जैसे J&K पर भी दखल दे सुप्रीम कोर्ट, आर्टिकल 370 पर फौरन करे सुनवाई- बोले उमर अब्दुल्ला
जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के मामले में तत्काल सुनवाई की और यह भी कहा कि इस मामले में किसी से सलाह नहीं ली गई थी। इसी तरह जम्मू-कश्मीर के मामले में भी सुनवाई होनी चाहिए।

किसान आंदोलन के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दख़ल के बाद अब जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के मामले में भी सुनवाई की मांग की है। जम्मू-कश्मीर नैशनल कॉन्फ्रेंस के वाइस प्रेजिडेंट अब्दुल्ला ने कहा कि ऐसा नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट कोई काम नहीं कर रहा है। अगर किसानों के मामले में अर्जेंट सुनवाई हो सकती है तो कश्मीर के मामले में क्यों नहीं हो रही।
उन्होंने कहा, ‘हमने देखा है कि सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन का संज्ञान लिया और अपना दख़ल दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि लगता है कि कानून बनाने से पहले किसी से सलाह नहीं ली गई। इसी तरह 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर में भी जो फैसला किया गया था, उसमें किसी की सलाह नहीं ली गई। इसलिए सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे पर तत्काल सुनवाई शुरू कर देनी चाहिए और फैसले में हमें भी शामिल करना चाहिए।’ अब्दुल्ला ने द इंडियन एक्सप्रेस के आइडिया एक्सचेंज कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए यह बात कही।
तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में एक बेंच ने 29 अगस्त 2019 को इस मामले में नोटिस जारी किया था औऱ जस्टिस एनवी रमाना की बेंच को रेफर कर दिया था। पांच जजों की बेंच ने 1 अक्टूबर 2019 को इस मामले में सुनवाई शुरू की लेकिन कुछ लोगों ने कहा गया कि इसे सात जजों की बेंच को रेफर कर देना चाहिए। यह याचिका ख़ारिज हो गई। इसके बाद कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से सुनवाई नहीं हो सकी।
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा है। अब्दुल्ला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि अगर कानून की बात आएगी तो सब कुछ बदला जा सकता है। लेकिन एक समय के बाद ज्यादा बदलाव करना संभव नहीं होगा।
अब्दुल्ला ने कहा, ‘जैसे-जैसे समय बीतेगा बहुत सारे लोगों को जम्मू-कश्मीर में रहने का अधिकार दे दिया जाएगा। प्रशासनिक पदों पर अपने लोगों को तैनात कर दिया जाएगा। पुलिसकर्मियों को वन्यकर्मी बना दिया जाएगा। फिर लोग कहेंगे कि झेलम में बहुत पानी बह चुका है। अब यही हक़ीकत है। लेकिन हमें इसे स्वीकार नहीं करना चाहते।’