हुर्रियत के इस नेता को हर महीने मिलते थे 6-8 लाख रुपये, अशांति फैलाने की थी जिम्मेदारी, पूछताछ में करीबी ने किया खुलासा
मैजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान में हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी के करीबी ने बताया, "गिलानी जिस फंड को मेंटेन करते थे उन्हें गोपनीय श्रोतों से हर महीने 6-8 लाख रुपये आते थे। अधिकांश लोगों को इस फंड की जानकारी नहीं थी।"

जम्मू-कश्मीर के एक बड़े अलगाववादी नेता ने हुर्रियत लीडर सैयद अली शाह गिलानी के बारे में सनसनीखेज खुलासा किया है। न्यायिक हिरासत में चल रहे नेता ने गिलानी पर “सीक्रेट फंड” हासिल करने का आरोप लगाया है। उसका दावा है कि लाखों रुपये का फंड गिलानी को मिलता था और वह हर हफ्ते फंड का डिटेल नष्ट भी किया करते थे। ‘इकोनॉमिक्स टाइम्स’ के मुताबिक गवाह का यह बयान मैजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किया गया है।
इकोनॉमिक्स टाइम्स ने गवाह की जानकारी गुप्त रखते हुए बताया कि वह गिलानी के करीबियों में से एक है। उसे जांच एजेंसी एनआईए ने “आतंकी फंडिंग” और भारत के खिलाफ युद्ध के षडयंत्र रचने के मामले में गिरफ्तार किया था। जांच एजेंसी ने 2017 में मुंबई धमाके के मास्टरमाइंड हाफिज सईद और हिजबुल मुजाहिदी के सरगना सयैद सलाउद्दीन समेत 15 को नामजद किया था।
इकोनॉमिक्स टाइम्स का दावा है कि उसके हाथ स्टेटमेंट का वह दस्तावेज हाथ लगा है जिसमें गिलानी के करीबी ने दिल्ली में मैजिस्ट्रेट के सामने सारे राज उगल दिए हैं। तहरीक-ए- हुर्रियत फाइनेंस की जानकारी देते हुए गवाह ने बताया है, “गिलानी जिस फंड को मेंटेन करते थे उन्हें गोपनीय श्रोतों से हर महीने 6-8 लाख रुपये आते थे। अधिकांश लोगों को इस फंड की जानकारी नहीं थी। फंडिंग में कश्मीरी व्यापारी जहूर वटाली का योगदान सबसे ज्यादा था।”
मैजिस्ट्रेट के सामने दिए गए इस बयान के आधार पर ही वटाली और J&k बैंक के खिलाफ एंटी करप्शन ब्यूरो ने आगे की कार्रवाई अमल में लाई। वटाली और उसके साथ कई अलगाववादी नेताओं को गिरफ्तार करके उनके खिलाफ 2017 में चार्जशीट दाखिल किया गया। गौरतलब है कि वटाली को हाईकोर्ट से जमानत भी मिल चुकी थी, लेकिन यह सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो गई। अपने 20 पन्नों के कबूलनामें में अलगाववादी नेता (जिसने पीओके की भी यात्रा की है) ने कहा, “रमजान के महीने में तहरीक-ए-हुर्रियत कश्मीर के सभी अखबारों में चंदे के लिए इश्तेहार छपवाता था। इसमें तहरीक-ए-हुर्रियत के कार्यकर्ता और पदाधिकारी चंदा देते थे। इसमें से 60 फीसदी फंड जिलाध्यक्ष के पास जाता था, जबकि 40 फीसदी हिस्सा गिलानी के पास।”
बयान में कहा गया है कि श्रीनगर से अधिकतम 20 लाख रुपये का कलेक्शन रहा है, जबकि बारामूला से हर साल 20 लाख रुपये आते थे।