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समलैंगिक विवाह के विरोध में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जमीयत उलेमा-ए-हिंद, कहा- यह विवाह की अवधारणा को कमजोर कर रहा

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा कि समलैंगिक विवाह की अवधारणा परिवार व्यवस्था पर हमला करेगी।

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulama E Hind) ने भारत में समलैंगिक विवाह (Same Sex marriage) को कानूनी मान्यता देने से संबंधित मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। जमीयत ने समलैंगिक विवाह को मान्‍यता देने का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिसमें जमीयत की ओर से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह के मामले को सुनवाई के लिए पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया है। इस मामले पर संविधान पीठ इस मामले की 18 अप्रैल 2023 से सुनवाई करेगी।

विवाह की मान्यता स्थापित सामाजिक मानदंडों के आधार पर- जमीयत

संगठन ने तर्क दिया है कि एक कानूनी संस्था के रूप में विपरीत लिंग के बीच विवाह भारत की कानूनी व्यवस्‍था के केंद्र में रहा है। उन्होंने मौजूदा कानूनी व्यवस्‍था में समलैंगिक विवाह को फिट करने के लिए दायर याचिकाओं का विरोध किया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी हस्‍तक्षेप की अर्जी में कहा कि विपरीत लिंगों का विवाह भारतीय कानूनी शासन के लिए मुख्‍य है। विवाह की अवधारणा किसी भी दो व्यक्तियों के मिलन की सामाजिक-कानूनी मान्यता से कहीं अधिक है। इसकी मान्यता स्थापित सामाजिक मानदंडों के आधार पर है। ये नव विकसित मूल्य प्रणाली पर आधारित परिवर्तनशील धारणाओं के आधार पर बदलती नहीं रह सकती है।

इसके साथ ही जमीयत ने अपनी अर्जी में कहा कि कई वैधानिक प्रावधान हैं जो विपरीत लिंग के बीच विवाह सुनिश्चित करते हैं। इसमें कानूनी प्रावधानों के साथ विरासत, उत्तराधिकार, और विवाह से उत्पन्न कर देनदारियों से संबंधित विभिन्न अधिकार हैं। उन्‍होंने कहा कि दो विपरीत लिंगों के बीच विवाह की अवधारणा मूल विशेषता की तरह है।

समलैंगिक विवाह की अवधारणा भारत के लिए नहीं

जमीयत के आवेदन में कहा गया है कि समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने वाली याचिकाएं फ्री-फ्लोटिंग सिस्टम की शुरुआत करके विवाह की अवधारणा को कमजोर कर रही हैं, जो कि एक स्थिर संस्था है। दलील दी गई है कि जिन देशों में समलैंगिक विवाह को वैध किया गया है, वे शिक्षा/साक्षरता और सामाजिक स्वीकृति के संदर्भ में सामाजिक व्यवस्था के एक निश्चित स्तर तक पहुंच गए हैं। आवेदन का तर्क है कि समलैंगिक विवाह की अवधारणा को भारत में पेश नहीं किया जा सकता है।

आवेदन में तर्क ‌दिया गया है, “यह उल्लेख करना भी उचित है कि अधिकांश पूर्वी देश समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देते हैं। आवेदन में यह दलील देने के लिए कि समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं दी जा सकती विभिन्न धर्मों का भी उदाहरण दिया गया है

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First published on: 01-04-2023 at 23:06 IST
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