पानी का संकट अब एक इलाके या देश से जुड़ा संकट भर नहीं रहा। हालात यहां तक बिगड़ चुके हैं कि कई देशों के बीच होने वाले करारों में आयुध खरीद और वाणिज्यिक सहमतियों के साथ पानी के लेनदेन पर भी बड़े समझौते होने लगे हैं। दिलचस्प यह भी है कि पृथ्वी का तीन हिस्सा जलमग्न होने के बावजूद इंसानी आबादी के हिस्से यह संकट दिनोंदिन इस कदर गहराता जा रहा है कि आशंका यहां तक जताई जा रही है कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा।
भारत उन देशों में शुमार है जहां अत्यधिक जल दोहन के कारण भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। भारत के हिस्से दुनिया की आबादी का 16 फीसद आता है, जबकि पीने योग्य पानी महज चार फीसद ही मौजूद है। निरंतर कम हो रही बारिश, भूजल का गिरता स्तर तथा जल स्रोतों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव जैसे कारणों से निरंतर जल की उपलब्धता जिन देशों में कम होती जा रही है, उसमें भारत का नाम भी प्रमुखता के साथ शामिल है।
भारत सरकार ने 2019 में जल जीवन मिशन की घोषणा कर 2024 तक देश के हर घर में जल पहुंचाने की बड़ी घोषणा की थी और जल मंत्रालय को जल शक्तिमंत्रालय के रूप में स्थापित करते हुए समयबद्ध कार्य सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त बजट की भी व्यवस्था की गई। पर इस योजना को जमीनी स्तर पर अभी तक अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। अलबत्ता इस योजना का यह असर जरूर पड़ा है कि पानी का मुद्दा अब आपवादिक न होकर व्यापक हो गया है। भारत सरकार ने सालाना बजट में 2021-22 के लिए जल जीवन मिशन के तहत 50 हजार करोड़ रुपए आबंटित किए हैं जिसके अंतर्गत 2.86 करोड़ घरों में नल से जल पहुंचाने के उद्देश्य से शहरी जल जीवन मिशन की शुरुआत की जाएगी।